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मास्टर रामानंद आज भले ही एक पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री कॉलेज के प्रबंधक हो चुके हैं परंतु उन्हे जब भी वक्त मिलता है तो वह गांव के छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने और उन्हें शिक्षित बनाने के उद्देश्य मे पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं ।
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मास्टर रामानंद ने कभी इसी गांव मे रहकर गांव के बच्चों को पढ़ाना-लिखाना शुरू किया और फिर देखते ही देखते पहले प्राइमरी, फिर इंटरमीडिएट और अब पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के वे प्रबंधक हो गए हैं । गांव के सभी लोग से मास्टर रामानंद को स्नेह और सम्मान प्राप्त है इतना ही नही क्षेत्र के बड़े लोगों में उनका उठना बैठना है ।
मास्टर रामानंद के चार बेटे हैं । वे सभी के सभी स्कूल को और आगे बढ़ाने की दिशा में निरंतर प्रयासरत हैं ।
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आज स्कूल के वार्षिकोत्सव का दिन है । इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर मास्टर साहब के करीबी और इसी गांव मे जन्मे, शिक्षा मंत्री भानु प्रताप यहां स्वयं उपस्थित हुए हैं । कार्यक्रम शुरू होने के कुछ ही क्षणों बाद वे भाषण देने के लिए माइक के पास आते हैं ।
परंतु वे जैसे ही अपना भाषण पढ़ने के लिए बॉक्स मे से चश्मा निकाल रहे होते हैं वैसे ही उनके हाथों से दो पृष्ठो मे लिखा भाषण का प्रपत्र अचानक नीचे गिर जाता है ।
पीछे खड़ा मास्टर साहब का सबसे छोटा लड़का अमर, लपक कर उसे उठाता है और मंत्री जी को थमा देता है । मंत्री जी बड़े प्यार से अमर के सर पर हाथ फेरते हैं और फिर मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए अपना भाषण पढ़ना शुरू करते हैं । वह कहते हैं,
"बस इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ । जय हिंद जय भारत"
मंत्री जी के इस भाषण को सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग जोर-जोर से हंसने लगते हैं । मास्टर साहब भी यह समझ नहीं पा रहें है कि मंत्री जी ने अपना भाषण शुरू करने से पहले ही ऐसा क्यों कहा ।
तभी मंत्री जी को अपनी गलती का एहसास होता है । वह भाषण के पन्नों को देखते हैं । तब पता चलता है कि वह दूसरे पन्ने का भाषण पहले पढ गए और पहला पन्ना तो दूसरे पन्ने के नीचे रह गया । वह समझ जाते हैं कि अमर ने गलती से भाषण का पहला पन्ना नीचे और दूसरा पन्ना ऊपर कर दिया है ।
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उनको अपनी इस प्रकार की किरकिरी अच्छी नहीं लगती । वह लोगों से माफी मांगते हुए अपना भाषण पुनः प्रारंभ करते हैं परंतु इससे पहले वे मास्टर साहब की चुटकी लेते हुए कहते हैं
"अरे भाई मैं तो भूल ही गया था कि मास्टर साहब के ऊपर तो एक कहावत चरितार्थ होती है 'चिराग तले अंधेरा'! जहां वे उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और इतने बड़े पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज के प्रबंधक हैं । वहीं उनके चारों बेटों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर है । अब आप इनके छोटे सपूत को ही देख लीजिए । बेचारे ने भाषण के पन्नो को उठा कर देते समय दूसरा पन्ना ऊपर और पहला पन्ना नीचे कर दिया । पर इसमे भला इसकी गलती ही क्या है इसने तो पढ़ना लिखना कभी सीखा ही नही । अब इसे क्या पता कि कौन सा पन्ना ऊपर रखना है और कौन सा नीचे"
यह सुनकर वहां बैठे लोग जोर-जोर से हंसने लगे । जिसे देख मास्टर साहब के साथ-साथ वहां उपस्थित उनके चारो बेटो को भी बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई । हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें. It's Free !
इस घटना ने मास्टर साहब व उनके पूरे परिवार को झकझोर के रख दिया । मास्टर साहब अपने इस अपमान को सहन नहीं कर सके और उनकी तबीयत दिन प्रतिदिन बिगड़ती चली गई । घर का कोई शख्स एक-दूसरे से अब आंखे मिलाने से भी कतराता ।
हालांकि इसमें मास्टर साहब का कोई दोष नहीं था । उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षित बनाने की हर संभव कोशिश की थी परन्तु उनके बच्चों ने पढ़ाई-लिखाई में हमेशा हीला हवाली की जिसके परिणामस्वरूप वे सभी के सभी लगभग निरक्षर हैं ।
अचानक एक दिन मास्टर साहब के बिस्तर के पास अमर आकर खड़ा होता है । मास्टर साहब उसे देखकर अपना मुँह फेर लेते हैं और बड़े ही कठोर अंदाज मे अमर से कहते हैं
"बताओ क्या काम है"
अमर पिता से कुछ कहे बगैर चुपचाप उनके बिस्तर पर बैठ जाता है । उसके हाथों में एक कॉपी और एक पेन है । वह पिता से कहता है
"पिताजी मैं पढ़ना चाहता हूँ क्या आप मेरे गुरु बनेंगे"
यह सुनते पिता की आंखों में आंसू की धार छलक उठती है । अमर अपने पिता के गले लग जाता है ।
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कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
शिक्षा है अनमोल रतन
दोस्तों शिक्षा सिर्फ आपके रोजगार का जरिया नहीं बल्कि आधुनिक जीवन में हर तरह से महत्वपूर्ण है । आज की बदलते परिवेश में शिक्षा का महत्व दिन प्रतिदिन और बढ़ता चला जा रहा है । ऐसे में बेहतर होगा कि समय रहते आप खुद को शिक्षित करे । इतना ही नहीं आप अपने बच्चों को भी शिक्षित करने की दिशा मे हर सम्भव प्रयास करें क्योंकि धन, एक समय पर खत्म हो सकता है परंतु अर्जित किया हुआ ज्ञान हमेशा आपके पास रहता है और आपके काम आता है । शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र भी नहीं होती । आप जब चाहे जिस दिन से चाहे खुद को शिक्षित करने में आगे बढ सकते हैं क्योंकि जहां चाह वहां राह, शिक्षा के मूल्य को बस समझने की आवश्यकता है ।
दीपक जहां अपने चारो ओर प्रकाश फैलाता है वहीं खुद उसके नीचे अंधेरा विराजमान रहता है !
मास्टर रामानंद के चारो बेटो का अनपढ़ होना कुछ वैसे ही है जैसे चिराग तले अंधेरा !
चिराग तले अंधेरा - मुहावरे का अर्थ एवं वाक्य प्रयोग
दीपक जहां अपने चारो ओर प्रकाश फैलाता है वहीं खुद उसके नीचे अंधेरा विराजमान रहता है !
मास्टर रामानंद के चारो बेटो का अनपढ़ होना कुछ वैसे ही है जैसे चिराग तले अंधेरा !
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