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एक बार एक ऋषि मुनि भटकते-भटकते हिमालय पर जा पहुंचे । वहां रहकर उन्होंने काफी दिनों तक तपस्या की । एक दिन उन्हें पहाड़ की चोटी पर किसी दुर्लभ जड़ी बूटी के होने का पता चला परन्तु ऊंचाई बहुत होने के नाते बाबा का वहां जा पाना संभव नही था ।
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निराश महामुनि जड़ी बूटी को प्राप्त करने की गहन चिंता मे डूब गए । उन्हे चिंतित देख वहां से गुजर रहे गांव के एक युवक ने पूछा
"बाबा आप इतने चिंतित क्यूँ हैं"
तब ऋषि मुनि ने उसे सारी बात बताई । उनकी परेशानी जानकर युवक ने कहा
"तो बस इतनी सी बात है"
ऐसा कहकर युवक हवा के वेग से पहाड़ पर चढ़ता चला गया और पलक झपकते ही उस दुर्लभ जड़ी बूटी को लेकर वह वहाँ वापस चला आया । उसकी इस प्रतिभा को देख कर बाबा हतप्रभ थे ।
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बाबा को ऐसे करिश्माई युवक के बारे मे जानने की इच्छा हुई तब युवक ने बताया कि उसका नाम अखिल है और वह पास के ही एक छोटे से गांव में रहता है ।
कुछ दिनों बाद जब बाबा पहाड़ छोड़कर जाने लगे तब अखिल भी उनके साथ हो लिया । काफी लम्बी यात्रा के बाद वे एक नदी के तट पर जा पहुंचे । लम्बी यात्रा के दौरान काफी थक चुके महामुनि ने नदी मे स्नान करने की सोची । स्नान के लिए महामुनि ने अभी अपने पैर नदी में डाले ही थे कि तभी उनका कमण्डल उनके हाथों से छूट कर पानी की तेज धारा में बह निकला । जबतक बाबा कुछ सोच पाते तबतक पानी की तेज धार उनके कमण्डल को काफी दूर बहाकर ले गई ।
यह सब देख रहे एक युवक ने काफी तेजी से नदी में छलांग लगा दी और देखते ही देखते कुछ ही पलों में वह बाबा की चरणपादुका को लेकर वापस चला आया ।
प्रसन्नचित्त बाबा ने उस युवक से काफी देर तक बात की बातों बातों मे पता चला कि उस प्रतिभाशाली युवक का नाम निखिल है ।
सरोवर के इसी तट पर बाबा ने अपना आसन जमा लिया अखिल और निखिल भी बाबा की सेवा करके बहुत मगन थे । एक दिन बाबा ने उनसे कहा हमारी लेटेस्ट (नई) कहानियों को, Email मे प्राप्त करें. It's Free !
"आखिर कब तक तुम दोनो मेरे साथ यूं ही भटकते रहोगे । तुम्हें अपने उज्जवल भविष्य के लिए कुछ करना चाहिए"
तब उन दोनों ने बाबा से कहा
"बाबा हम तो आपके शिष्य बन कर ही बहुत खुश हैं । हमें और कुछ नहीं चाहिए"
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इसपर आश्चर्य व्यक्त करते हुए बाबा ने कहा
"शिष्य, किसका शिष्य?,
बाबा की बातों को सुनकर दोनों चौक गए । उन्हें देखकर बाबा ने कहा
"देखो, मैं यूं ही किसी को अपना शिष्य नहीं बनाता इसके लिए उसे मेरी कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है"
अखिल और निखिल किसी भी कीमत पर बाबा का शिष्य बनना चाहते थे । ऐसे में बाबा की परीक्षा मे भाग लेने के लिए दोनों फौरन तैयार हो गए ।
बाबा ने कहा
"दूर आस्था नामक वन में एक कृपा नाम का अदभुत वृक्ष है । उस वृक्ष का एक पुष्प जो सबसे पहले लाकर मुझे देगा वही मेरा सच्चा शिष्य होगा"
इतना सुनते ही दोनों वन की तरफ दौड़ पड़े काफी लंबा रास्ता तय करने के पश्चात सामने एक अति सुन्दर नदी दिखाई दी । बाबा के बताए मार्ग के अनुसार आस्था नामक वन नदी के ठीक उस पार था परंतु अखिल के सामने समस्या ये थी कि आखिर इस नदी को पार कैसे किया जाए ।
अखिल अभी सोच ही रहा था कि तभी किसी के नदी में कूदने की आवाज सुनाई दी अखिल ने चौक कर उसकी तरफ देखा परंतु वह शख्स कोई और नही बल्कि निखिल था । तैराकी मे निपुण निखिल काफी तेजी से नदी पार करने लगा ।
तभी अखिल को पीछे छूट चुके एक विशालकाय पर्वत की याद आयी जिसे पार करके भी उस वन तक पहुंचा जा सकता है । ये सब याद आते ही वह वापस पहाड़ की तरफ भागा परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी ।
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कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi
किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपनी क्षमताओं के अनुरूप एक बेहतर योजना का होना अतिआवश्यक हैं !
दोस्तों दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो जिंदगी मे Success पाने के लिए अपना Goal निर्धारित तो कर लेते हैं परंतु लक्ष्य तक कोई ठोस एक्शन प्लान उनके पास नहीं होता ।
इस कहानी में जहां एक तरफ निखिल ने अपनी क्षमताओं के मुताबिक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक अच्छी योजना बनाई । वहीं अखिल ने ऐसा नही किया वह लक्ष्य के पीछे बस एक अंधी दौड़ लगाता रहा । एक तरफ जहाँ निखिल तैराकी मे मास्टर था वहीं दूसरी तरफ अखिल को पहाड़ चढ़ने मे महारत हासिल थी । यदि उसने पहाड़ी मार्ग को पीछे छोड़, आगे बढ़ने की बजाय उसे ही अपनी मंजिल का रास्ता चुना होता तो शायद जीत का शेहरा निखिल की बजाए उसके सर बधता ।
इसलिए लक्ष्य तक पहुँचने के लिए एक बेहतर योजना का होना भी बहुत आवश्यक है ।
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