गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय कबीर दास के दोहे पर प्रेरक कहानी

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय- कबीर दास के दोहे पर प्रेरणादायक हिन्दी स्टोरी, Importance of teacher for student story in hindi

गुरु का स्थान कहानी | Importance Of Teacher For Student Story In Hindi

  छोटे से कस्बे में इंजीनियर साहब के मकान के बाहर बाईं तरफ मदार का पेड़ जो काफी पुराना हो चुका है न जाने किस वजह से सूखता जा रहा है । इंजीनियर साहब के यहां बिटिया की शादी है ऐसे मैं वह ससुराल पक्ष के आने से पहले वे घर को चमकाने में लगे हैं । 

  वह घर के सामने चारदीवारी कराना चाहते हैं मगर चारदीवारी के बीच में ही  मदार का पेड़ आ रहा है । उसे उन्होने एक बाबा जी के कहने पर लगाया था । यह पेड़ उनके लिए काफी शुभ रहा क्योंकि इसके बाद उन्हें जीवन में काफी उन्नति प्राप्त हुई चूंकि यह पेड़ अब सूख चुका है इसलिए इसे निकाल देने में कोई हर्ज नहीं है । नीव की खुदाई चल रही है ऐसे में बीच में आए इस मदार के पेड़ को मजदूरों ने इंजीनियर साहब के कहे अनुसार बहुत ही एहतियात बरतते हुए बाहर निकाल दिया है अब चूंकि इंजीनियर साहब को मदार के इस पेड़ मे काफी श्रद्धा है इसलिए वो उसे मजदूरों की मदद से ले जाकर दूसरे मंजिले की छत पर रखवा देते हैं ।
  धीरे-धीरे शादी का समय निकट आ जाता है । काफी दिनों बाद घर में हो रहे उत्सव में इंजीनियर साहब ने अपने सभी निकट संबंधियों नात रिश्तेदारों एवं आस पड़ोस के सभी लोगों को बुला रखे हैं । इंजिनियर साहब इस कार्यक्रम में बाबा जी को आमंत्रित करने उनके आश्रम गए थे । मगर अस्वस्थ होने के कारण वे उनकी बिटिया की शादी में नहीं आ सके । 
  शादी का कार्यक्रम निपटे धीरे-धीरे काफी समय गुजर जाता है । फुर्सत मिलने पर इंजीनियर साहब को मदार के पेड़ की याद आती है । चूंकि उन्होंने किसी से सुन रखा था कि पुराने मदार के पेड़ में भगवान गणेश निकल आते हैं । ऐसे में वे दौड़े-दौड़े उस मदार के पेड़ का निरीक्षण करने जाते हैं जो उनके छत पर पड़ा सूख रहा है । वह एवं उनका पूरा परिवार पेड़ का निरीक्षण करता है मगर उन्हें कहीं भी गणेशजी नजर नहीं आते ।
  धीरे-धीरे कस्बे के कई ज्ञानी-अज्ञानी लोग वहां पहुंचते हैं । मगर किसी को भी उसमें भगवान गणेश की छाया नजर नहीं आती । ऐसे में निराश होकर इंजीनियर साहब उस पेड़ को वही छोड़ जाते हैं । धीरे धीरे गर्मियों का और फिर बरसात का सीजन आता है मगर वह पेड़ वही ज्यों का त्यों पड़ा रहता है । इंजीनियर साहब उस पेड़ मे भगवान गणेश को न पाकर उससे काफी छुब्ध हैं वे उसे बाहर कूड़े के ढेर पर फेंकने की सोच रहे हैं । 
  तभी एक दिन उनके बाबाजी जिन्होंने उन्हें मदार का पेड़ लगाने की राय दी थी और जो उनके गुरु जी भी हैं वे अकस्मात उनके घर पधारते हैं । इंजीनियर साहब उनकी काफी आवभगत करते हैं । शाम को जब वे लोग बाहर लॉन में बैठे बात कर रहे थे तभी गुरु जी की नजर उस मदार के पुराने पेड़ की ओर पड़ती है मगर वह तो वहां से गायब है । 
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  बाबा जी इंजीनियर साहब से मदार के पेड़ के बारे में पूछते हैं । तब इंजीनियर साहब उन्हें सारी बातें बताते हैं । बाबा जी उनकी बातों को सुनकर हंस पड़ते हैं । वह उन्हें उस कटे पेड़ के पास ले जाने को कहते हैं । इंजीनियर साहब फटाफट बाबा जी को लिए दूसरे मंजिले की छत पर पहुंच जाते हैं । जहां वह मदार का पेड़ काफी दिनों से सूख रहा है ।  बाबा जी काफी ध्यान से उस मदार के वृक्ष को इधर-उधर घुमा-घुमा कर देखने लगते हैं और अचानक मुस्कुरा उठते हैं । इंजीनियर साहब उनके मुस्कुराते चेहरे को देख उनसे पूछ बैठते हैं 
“क्या बात है महाराज जी आपने ऐसा क्या देखा जिसे देख आप इतना मुस्कुरा रहे हैं ?”
गुरूजी बिना कुछ कहे उनसे वहां कुल्हाड़ी लाने को कहते हैं । वह कुल्हाड़ी से उस मदार के पेड़ को कांट छांट कर जब इंजीनियर साहब के सामने रखते हैं तब उसे देखकर सभी आश्चर्यचकित रह जाते हैं । मदार के उस पेड़ में भगवान गणेश की प्रतिमा स्पष्ट प्रतीत हो रही है । यह देख सभी आश्चर्यचकित रह जाते हैं । इंजीनियर साहब दौड़े-दौड़े गुरु जी के चरणों में गिर जाते हैं । वह गुरुजी से कहते हैं 

 “गुरु जी, अगर आप वक्त रहते यहां नहीं पधारते तो हमने तो इसे एक आम पेड़ समझकर कहीं कूड़े में  फेंक दिया होता और इस प्रकार हमारे हाथों इतना बड़ा अनर्थ हो जाता”

   गुरु जी ने आज एक बार फिर गुरु की महत्ता को बताते हुए अपने शिष्य यानी इंजीनियर साहब को ईश्वर के दर्शन कराए थे । यदि आज गुरुजी समय से न पहुंचते तो इंजीनियर साहब तो उसे कोई आम पेड़ समझकर कहीं फेंक आते और इस प्रकार ईश्वर के साक्षात दर्शन से वे वंचित रह जाते ।

कहानी से शिक्षा | Moral Of This Best Inspirational Story In Hindi 

गुरु की कृपा के बगैर गोविंद अर्थात भगवान के दर्शन होना बिल्कुल असंभव है इसीलिए हमें हमेशा गुरु को श्रेष्ठतम स्थान देना चाहिए !
कबीर का यह दोहा

 “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय

  बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए”

 अर्थात जब गुरु और गोविंद दोनों सामने खड़े हो तो सबसे पहले पांव किसके छुए जाएं तो ऐसे समय में हमें गुरु के ही पांव सबसे पहले छूने चाहिए क्योंकि वह गुरु ही है जो गोविंद का ज्ञान कराता है ।
सच्चे गुरु के बगैर हमारा ज्ञान अधूरा है गुरु ही है वह जो हमें सही मार्ग पर चलने की दिशा दिखाता है ।
  जिसने हमें गोविंद का ज्ञान दिया, गोविंद के अर्थात प्रभु के दर्शन कराए वह श्रेष्ठतम है । सही और गलत में फर्क कराने वाला गुरु ही होता है । क्या सच है और क्या झूठ इसके बारे में बताने वाला गुरु ही होता है । बिना ज्ञान के पशु और इंसान में कोई फर्क नहीं है और यह ज्ञान हमें अपने गुरु से ही प्राप्त होता है । इसलिए हमें हमेशा गुरु को सबसे प्रथम मानना चाहिए ।
  आज के वर्तमान युग में गुरु की परिभाषा थोड़ी बदल गई है आज के युग में गुरु की महत्ता पहले से बिल्कुल भिन्न हो चुकी है । आज शिष्य के नजर में गुरु वह है जिसे वह एक निश्चित  धनराशि देकर ज्ञान प्राप्त करता है । यद्यपि इसमें कुछ दोष गुरु का भी है मगर गुरु लाख गलत हो शिष्य को अपना कर्तव्य नहीं भूलना चाहिए । उसे हमेशा गुरु को स्वयं से श्रेष्ठ मानकर चलना चाहिए । तभी उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होगी । तभी वह सत्य असत्य में भेद कर पाएगा । तभी वह जीवन के सच्चे अर्थ को समझ पाएगा । 
  आजकल के वर्तमान युग में बढ़ रहे मानसिक तनाव की सबसे बड़ी वजह हमारी गुरु से बढी दूरी हैं । गुरु की शरण में जाकर ऐसी छोटी-छोटी मुश्किलों का हल ढूंढा जा सकता है । मगर यह तभी संभव है जब हम गुरु को वही आदर सम्मान दें जो हम गोविंद को देते आए हैं ।   
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author

Karan Mishra

करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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