एक गाय ने कुछ दिनों पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया। वो उसे खूब प्रेम करती। उसे कभी खुद से दूर नहीं जाने देती। बछड़ा भी मां के हमेशा पास ही रहता, हमेशा उसके साथ साथ चलता।
एक बार दोनों मैदान में घास चर रहे थे। सर्दियों का मौसम था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। तापमान बहुत कम ही था।
घास चरते-चरते गाय एक तालाब के किनारे जा पहुंची। बछड़ा मां के साथ हमेशा चिपक के रहने वालों में से था। वो भी उसके साथ नदी के किनारे जा पहुंचा, तालाब के किनारे चरते-चरते बछड़ा ये समझ नहीं पाया कि तालाब के कारण आसपास की भूमि भी नम व कीचड़ जैसी होगी। जिसके कारण तालाब से सटी घास में फिसलन भी हो सकती है।
अचानक उस छोटे से बछड़े का पैर फिसला और वह फिसल कर तालाब में जा गिरा तालाब का पानी मानो बर्फ हो गया हो, पूरी तरह ठंडा जिसमें गिरते ही बछड़ा ठंड से कांपने लगा। वह मां-मां पुकारने लगा। यह देखकर उसकी मां भी स्तब्ध रह गई। वैसे तो सभी मां की भाँति वो भी अपने छोटे से बछड़े को प्यार करती थी। मगर मुश्किल ये थी कि बछड़े को वो तालाब में से निकाले तो निकाले कैसे, इसके लिए तो उसे भी तालाब में घुसना पड़ेगा और बछड़े को बाहर ढकेलना होगा। इसके बाद बछड़ा शायद बाहर आ जाए या फिर ना भी आ पाए।
मगर फिर एक बात तो तय थी, कि फिर वो भारी भरकम गाय उसमें से कभी नहीं निकल पाती। और तालाब का पानी इतना ठंडा था, कि कुछ ही घंटों में उसकी मृत्यु हो जाती। यानि अब तो तय था, कि या तो बछड़े की जान जाएगी या फिर बछड़े और गाय दोनों की जान जाएगी।
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ये सारा नजारा वहां मौजूद और गाय बैल भी मूकदर्शक बने देख रहे थे। मगर कोई मदद को आगे नहीं आ रहा था। सबके सामने वही समस्या थी, जो बछड़े की मां के सामने थी।
सब चुप थे, सिर्फ बछड़े की चीख पुकार सुनाई दे रही थी। काफी ज्यादा ठंडे पानी के कारण थोड़ी ही देर में बछडे़ का शरीर सुस्त पड़ने लगा। वो अपनी मां को बड़े ही आशा भरी निगाहों से देख रहा था। पर मां की आंखों में लाचारी साफ झलक रही थी।
थोड़ी ही देर में अंधेरा होने लगा। बछड़े को काफी देर हो चुकी थी । कुछ देर बाद ही उसका मरना अब लगभग तय था। मां बछड़े को छोड़कर सभी गाय बैल वहां से वापस अपने पूर्व स्थान की ओर लौटने लगे।
अब तो बछड़ा भी समझ गया था कि अब उसकी मदद को कोई नहीं आएगा, धीरे-धीरे रात का आगमन होने लगा। कभी-कभी ठंड के मारे बछड़ा छटपटाहट में अपने हाथ पैर आगे फेंकता उसके पैर जैसे जैसे तालाब के तट पर पड़ते, वैसे-वैसे उस तालाब से निकलने का रास्ता समझ में आने लगा। अब तक दूसरों की मदद के आस में ठंड से परेशान नन्हे से बछड़े के दिमाग में तालाब से बाहर निकलने का तरीका कुछ कुछ समझ में आने लगा था। कुछ प्रयासों के बाद एक प्रयास में बछड़े ने अपनी अगली टांग तालाब के तट पर ऊपर कि तरफ फेकी और पिछली दोनों टांगों से खुद को उछाल दिया। और फिर देखते ही देखते वो बाहर आ गया।
अब तो बछड़ा भी समझ गया था कि अब उसकी मदद को कोई नहीं आएगा, धीरे-धीरे रात का आगमन होने लगा। कभी-कभी ठंड के मारे बछड़ा छटपटाहट में अपने हाथ पैर आगे फेंकता उसके पैर जैसे जैसे तालाब के तट पर पड़ते, वैसे-वैसे उस तालाब से निकलने का रास्ता समझ में आने लगा। अब तक दूसरों की मदद के आस में ठंड से परेशान नन्हे से बछड़े के दिमाग में तालाब से बाहर निकलने का तरीका कुछ कुछ समझ में आने लगा था। कुछ प्रयासों के बाद एक प्रयास में बछड़े ने अपनी अगली टांग तालाब के तट पर ऊपर कि तरफ फेकी और पिछली दोनों टांगों से खुद को उछाल दिया। और फिर देखते ही देखते वो बाहर आ गया।
कहानी से शिक्षा
मुश्किले हर किसी पर आती है, कभी-कभी दूसरों की मदद से हमें उन मुश्किलों से छुटकारा मिल जाता है। मगर ये जरूरी नहीं कि हर बार हमें किसी की सहायता मिले ही मिले ऐसे में हमें हमेशा अपनी मदद खुद करने के लिए तैयार रहना चाहिए, और हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
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