"सावन"
बूंद गिरे जब सावन की,
मन में हलचल होती है ।।
छम-छम करती पैजनिया सी,
नैनन को सुख देती है ।।
भीग उठे जब सावन में हम,
मन भी पावन हो जाए ।।
सावन की इस बरखा में,
मन वृंदावन सा हो जाए ।।
बरसों-बरस से प्यासे से मन की,
प्यास बुझावन देती है ।।
छम छम करती पैजनिया सी,
नैनन को सुख देती है ।।
Poet :- "Karan "GirijaNandan"
"सपने"
देखे जिनके सपने,
वो नही थे अपने ।।
उनके भी सपने न्यारे,
कदमो में चाँद सितारे ।
उम्मीद उनकी न हुई पूरी,
ये रात भी रह गई अधूरी ।
देखे जिनके सपने
वो नही थे अपने...
कुछ पल और रुक जाते,
बात मेरी भी मान जाते ।
दामन भर देता खुशियो से,
अगर विश्वास मेरा कर पाते ।
देखे जिनके सपने,
वो नही थे अपने ।।
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