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कुछ भी असंभव नही - प्रेरणादायक हिंदी कहानी | Nothing Is Impossible - An Inspirational Story In Hindi
पहाड़ों की गोद में स्थित लक्ष्मीपुर गांव अपने आप में काफी समृद्ध और संपन्न था । गांव में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी । गांव छोटा ही था परंतु गांव में लोग काफी थे । चारो ओर से दिखने वाले खूबसूरत पहाड़ गांव की सुंदरता में चार चांद लगाते थे । गांव का हर व्यक्ति कृषि कार्य ही करता था । जिस वजह से गांव से किसी को बाहर नहीं जाना पड़ता था ।
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गांव के लोगों का संपर्क बाहरी लोगों से न होने के कारण ही शायद गांव के लोगों में बाहर की बुराइयां नहीं पनप सकी थी । गांव के सभी लोग काफी सीधे और सरल तथा परस्पर सहयोग की भावना रखने वाले थे ।
गांव के अंतिम छोर पर राम का घर था । राम बहुत ही परिश्रमी और परिस्थितियों से जूझने वालों में से था । राम की माँ का काफी समय पहले देहांत हो चुका था । घर में एक बूढ़े पिता, पत्नी और दो छोटे छोटे बच्चे थे । वह अपने कठिन परिश्रम के दम पर गांव में सबसे ज्यादा अनाज उगाता था परंतु राम परिश्रमी के साथ-साथ काफी दयालु और परोपकारी भी था ।
वह अपने जरूरत से ज्यादा अनाज को बेचने की बजाय गांव के दूसरे गरीब लोगों को दान कर देता । गांव के सभी लोग उसे बहुत मानते थे । वह गांव का मुखिया तो नहीं था परंतु किसी मुखिया से कम मान-सम्मान भी उसका नहीं था ।
अप्रैल का महीना आया गेहूं की फसल खेतों में लहलहा रही थी । इस बार फसल काफी अच्छी हुई थी । सब बहुत खुश थे । राम के पड़ोसी बिहारी को पुत्र पैदा हुआ । इस खुशी में उसने पूरे गांव को दावत दी ।
सब इकट्ठा हुए घर के कुएं के बगल में ही ईट से बनी काम चलाऊ भट्टी पर भोजन पकाया जा रहा था । तब तक चल रही जोरदार पछुआ हवा ने अपने साथ भट्टी से निकली चिंगारियों को भी उड़ाले चली ।
उनमें से एक चिंगारी सामने सूखे फसल के खेतों में जा गिरी । उसके कुछ ही समय पश्चात उस चिंगारी ने आग का रूप ले लिया । गांव वालों ने देखा तो दावत के लिए बने पकवानो से भरे तसले बाल्टियां और जाने कितने सामानों को उलट कर आग बुझाने भागे ।
वैसे तो गांव में कुएं बहुत थे । मगर कुएं का पानी आग पर काबू पाने मैं नाकाफी साबित हो रहा था । क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या जवान आग बुझाने को पूरा गांव चल पड़ा । जिसके हाथ में जो आया वो वही लेकर आग की तरफ दौड़ पड़ा पर आग थी की जैसे गांव के बर्बादी की कसम खाकर आई हो ।
वैसे तो गांव में कुएं बहुत थे । मगर कुएं का पानी आग पर काबू पाने मैं नाकाफी साबित हो रहा था । क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या जवान आग बुझाने को पूरा गांव चल पड़ा । जिसके हाथ में जो आया वो वही लेकर आग की तरफ दौड़ पड़ा पर आग थी की जैसे गांव के बर्बादी की कसम खाकर आई हो ।
देखते ही देखते आग एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच गई । सारी फसल कुछ ही पलों में राख का ढेर हो गई । गांव वालों को मानो सांप सूंघ गया । जश्न मातम में बदल गया । जहाँ खेती ही एक मात्र सहारा थी आग की वजह से अब वह भी छिन गया ।
अब तो अगली फसल में पूरे छः महीने का वक्त था । सब ने आग और ईश्वर दोनों को जमकर कोसा । अब तो इंतजार था, तो पहली बारिश का हालांकि अभी जुताई बुवाई का समय तो नहीं हुआ था । परंतु दाने दाने की चिंता ने उन्हे बेताब कर दिया था ।
धीरे-धीरे बारिश का समय भी निकट आ गया । सब बादलों को निहारने लगे परंतु ईश्वर का यह कैसा मजाक दाने-दाने के मोहताज गांव वालों को बादल भी मानो चिढ़ा रहा हो ।
बादल लगते तो जरूर, वे भी एक दम काले-काले परंतु तब तक ठंडी हवाओं का झोंका आता और चेहरे पर खिलती आस को बादलों के साथ उड़ा ले जाता ।
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देखते ही देखते कई महीने गुजर गए । आग में तपे गांव वालों पर सूखे की भी मार पड़ गई । अब तो जमा किया अन्न का एक-एक दाना खत्म होने को था । सब एक दूसरे से अनाज मांगते हैं मगर किसी के पास हो तब न कोई किसी को दे ।
अब तो भूखों मरने के दिन आ गए । मजबूर गांव वाले जीवन में पहली बार शहर जाकर काम ढूंढने की सोचने लगे । राम भी उनके साथ जाने की सोचा तब उसके बूढ़े पिताजी ने राम से कहा
"बेटा शहर जाना जरूरी है क्या"
राम "तो क्या करें पिताजी कब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे"
पिताजी "तो दूसरा रास्ता भी तो है"
राम "क्या पिताजी दूसरा रास्ता कौन सा है"
पिताजी
"रास्ता तो है बेटा हां, थोड़ा कठिन जरूर है परन्तु अगर सारे गांव वाले साथ देंगे तो ज्यादा मुश्किल नहीं होगी"
"रास्ता तो है बेटा हां, थोड़ा कठिन जरूर है परन्तु अगर सारे गांव वाले साथ देंगे तो ज्यादा मुश्किल नहीं होगी"
पिताजी की ऐसी बातों को सुनकर राम आश्चर्य में पड़ गया । वह सोचने लगा आखिर ऐसा कौन सा रास्ता है । जो में नहीं जानता जिसके बारे में पिताजी कह रहे हैं ।
इन्हीं सवालों में डूबे राम को पिताजी ने झकझोरा और बोले
"क्या सोचने लगे राम"
"क्या सोचने लगे राम"
राम "नहीं पिताजी कुछ नहीं"
थोड़ा ठहरने के बाद वह फिर बोला
"बताइए कौन सा रास्ता है"
पिताजी
पिताजी को टोकते हुए राम ने कहा "पर पिताजी"
थोड़ा ठहरने के बाद वह फिर बोला
"बताइए कौन सा रास्ता है"
पिताजी
"बेटा गांव के पीछे जो पहाड़ है । उसके उस तरफ एक नदी गुजरती है । पहाड़ को काटकर अगर एक पतला साथ भी रास्ता बन जाए तो फिर हमें कभी भी ऐसे दिन नहीं देखने पड़ेंगे"
पिताजी को टोकते हुए राम ने कहा "पर पिताजी"
"मैं जानता हूं कि ये काम काफी कठिन है पर सारा गांव अगर मिलकर प्रयास करें तो एक दिन यह असंभव सा दिखने वाला काम भी संभव हो सकता है"
ऐसा पिता ने राम की बात बीच में ही काटते हुए कहा ।
राम पूरी रात पिताजी की बातों को सोचता रहा । जैसे-जैसे रात गुजरती गई वैसे वैसे पिताजी की बिना सर पांव की बात, उसे सही लगने लगी । अगले ही दिन राम ने सारे गांव वालों को इकट्ठा किया और उनके सामने पिताजी द्वारा सुझाए उपाय को बताया ।
उनकी बातों को सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग ताल ठोक कर हंसने लगे । उनमे से एक ने बोला
"पगला गया हैं क्या, पहाड़ तोड़ेगा ?"
बहुत दिनों बाद गांव में ऐसी हंसी गूंजी थी । उसने फिर बोला
" तुम सबने, हमारा राम हनुमान बनने जा रहा है पहाड़ तोड़ेगा और गांव की संजीवनी लाएगा जा राम जा अपना समय न गवां जाकर पहाड़ को तोड़"
राम ने उनकी इस प्रकार की बातों को इग्नोर कर उन्हें निरंतर समझाने और उन्हें विश्वास में लेने का प्रयास करता रहा ।
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मगर वह तैयार नहीं हुए कुछ ही दिनों में गांव के सभी पुरुष शहर कमाने चले गए पर राम नहीं गया उसे अपने पिता की कही बात पर पूर्ण विश्वास था । सब के जाने के बाद राम ने समझ लिया कि अब उसे ही यह असंभव कार्य को संभव कर दिखाना होगा ।
उसने फटाफट औजार उठाया और पहाड़ काटने निकल पड़ा । कई दिनों तक उसने लगातार पसीना बहाया परंतु नदी का रास्ता बनना तो दूर उसके काफी प्रयासों से भी पहाड़ पर कुछ फर्क नहीं पड़ा । थक-हार कर मायूस राम घर लौट आया ।
उसके घर आते ही पिताजी ने उससे पूछा
"क्या हुआ राम तुम चले क्यों आए"
राम ने सारी बात बताई और बोला
निराश बैठे राम का हाथ पिताजी ने पकड़ा और उसे कुए के पास ले गए । उन्होंने कुए के घिर्री को दिखाया और बोला
पिताजी की इस बात ने राम को आत्मविश्वास से लवरेज कर दिया । उसने एक भी पल न गवांते हुए पहाड़ की ओर बढ़ चल पड़ा ।
"पिताजी गांव वाले सही थे । आप जैसा कह रहे थे वैसा कुछ भी नहीं हो सकता । पहाड़, पहाड़ है और हम इन्सान उसे तोड़ पाना इन हाथों के बस की बात नही"
निराश बैठे राम का हाथ पिताजी ने पकड़ा और उसे कुए के पास ले गए । उन्होंने कुए के घिर्री को दिखाया और बोला
"देखो बेटा एक रस्सी से रगड़ रगड़ कर अगर इस घिर्री में लकीर खीच सकती है तो तुम तुम्हारे लगातार प्रयासों से पत्थरों में लकीर क्यों नहीं खींच सकती । पहाड़ों में रास्ता क्यों नहीं बना सकता"
पिताजी की इस बात ने राम को आत्मविश्वास से लवरेज कर दिया । उसने एक भी पल न गवांते हुए पहाड़ की ओर बढ़ चल पड़ा ।
सच्चे आत्मविश्वास की शक्ति ने उसके काम को और प्रभावशाली बना दिया । कुछ ही दिनों में उसके काम का आंशिक परिणाम दिखने लगा ।
राम के प्रयासों ने जो चित्र खींचा । उसने गांव में बच गई औरतो के अंदर भी भरोसा जगा दिया । एक-एक करके वे भी अपने बच्चों के साथ उसका हाथ बटाने वहाँ आ पहुंची । बस फिर क्या था, एक लंबे प्रयास के बाद सूखे से जगह-जगह फट गई, खेतों की जमीन पर नदी का पानी पहाड़ के मध्य से होता हुआ वहाँ जा पहुंचा ।
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Moral Of The Story
Writer
Karan "GirijaNandan"
With
Team MyNiceLine.com
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