मैं अपने मित्र के साथ शाम के समय छत पर टहल रहा था । तभी मेरी निगाह छत पर रखी पानी की टंकी के भर जाने के बाद उससे गिर रहे पानी पर पड़ी । मैंने सोचा "टंकी भर जाने के बाद गिर रहे इस अनावश्यक पानी का, कुछ इंतजाम तो करना ही होगा । तभी पंछियों का एक जोड़ा टंकी से गिर रहे पानी के पास आकर बैठा ।
उनमें से एक चिड़िया बोली
"इतनी देर से प्यास लगी है परंतु कहीं भी पानी की एक बूंद तक नहीं । भगवान का शुक्र है कि यहां पर थोड़ा पानी मिल गया, वरना आज तो बिना पानी के ही प्राण निकल जाते"
उसके साथ बैठी दूसरी चिड़िया ने उसकी बातों में अपनी सहमति जताते हुए बोली
"तुम ठीक कहती हो मुझे भी बहुत जोर की प्यास लगी थी परंतु कहीं भी पानी नहीं मिला । इतनी तेज धूप में बिना पानी के रह पाना कितना मुश्किल है"
मै अपने मित्र से बात करते हुए उन पक्षियों को देख रहा था । पंक्षियों को पानी पीते देख मुझे न जाने क्यूं बहुत सुकून मिल रहा था । ऐसा लग रहा था जैसे मैं बहुत देर का प्यासा हूं और जो पानी की बूंदे उन पंक्षियों के गले से नीचे उतर रही थी वही पानी की बूंदे मेरे गले से उतर कर मेरी प्यास बुझा रही हो ।
थोड़ी देर में एक नन्ही गौरैया, जो अक्सर मेरे छोटे से गार्डन में उछल कूद करती रहती है, अपने साथियों के साथ वहां आई ।
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उन्हें देख चिड़िया बोली
"आओ नन्ही गौरैया, तुम भी न जाने कितनी दूर से उड़कर यहाँ आ रही होगी, तुम्हें भी बहुत जोर की प्यास लगी होगी । आओ पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लो"
नन्ही गौरैया अपने चंचल स्वभाव मे बोली
"नहीं मैं तो यही गार्डन में रहती हूँ । छत पर पानी देखा तो पीने चली आई"
चिड़िया बोली "हम लोग तो बहुत दूर से पानी ढूंढते हुए आ रहे हैं परंतु हमें कहीं भी पानी नहीं मिला यहां दूर-दूर तक कोई जलाशय नहीं है और न ही पेड़ो की छांव । यहाँ तो बस चारों तरफ ऊंची-ऊंची इमारतें ही इमारतें हैं"
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तब गौरैया कहती है
"काश हर जगह ऐसे ही पानी रखा होता तो कितना अच्छा होता"
(गौरैया ने अपनी यह बात बहुत उम्मीद और एक जरूरतमंद के जैसे कही)
वैसे तो पक्षियों का जोड़ा थोड़ी ही देर में पानी पीकर वहाँ से उड़ चला परंतु उन्होंने मेरे मन में न जाने कितने सवाल जगा गए ।
मै सोचने लगा कि इस भीषण गर्मी में ये पंक्षी पानी की तलाश में न जाने कहां- कहां भटके होंगे तब जाके को उन्हें ये पानी मिल होगा । मैंने अपने मित्र से कहा
"मित्र सैकड़ो पंछी रोज यहाँ से गुजरते होंगे उनके लिए भी पीने के पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी हमारी बनती है मेरा मतलब है कि हमारे जल पर पंछियों का भी उतना ही हक है जितना कि हमारा । हमें थोड़ा पानी पक्षियों के लिए भी रखना चाहिए, जो इस भीषण गर्मी में पानी की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं"
"तो हमें क्या करना चाहिए"
(मित्र ने मुझसे पूछा)
"मैंने सोचा है कि टंकी के पास ही एक मिट्टी का बड़ा बर्तन रखूंगा ताकि टंकी से गिरने वाला अतिरिक्त पानी मिट्टी के बर्तन मे इकट्ठा हो"
(मैंने अपने मित्र से कहा)
हमारे मित्र को हमारा ये आइडिया पसंद आया उसने सहमति में सर हिलाते हुए बोला
"सही कहते हो इससे इन पक्षियों के लिए भी पानी की व्यवस्था हो जाएगी"
अगली सुबह उठकर मैंने सबसे पहले पक्षियों के लिए बनाई अपनी योजना पर काम किया । तब जाकर मेरे मन को शांति मिली । जब मै शाम को छत पर यूं ही टहल रहा था तब कुछ पंछियों को वहाँ पानी पीता देख मुझे बहुत अच्छा लगा । मेरे मन को सुकून पहुंचा । मेरा मन एकदम शांत था मैं मन ही मन बहुत खुश था ।
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Short Inspirational Story In Hindi
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थोड़ा जल पंक्षीयो के लिए भी,
हमारे जल पर पंक्षीयो का भी हक है!
हमारे जल पर पंक्षी भी निर्भर हैं !
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