पेड़ पौधों की कहानी | पेड़ और बच्चे की कहानी | पेड़ और मनुष्य की कहानी
महर्षि दयानंद के आश्रम में राज्य के लगभग सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते हैं । अपने स्वभाव के अनुरूप महर्षि दयानंद बच्चों के साथ बहुत ही प्यार से पेश आते । महर्षि कभी भी बच्चों को कठोर सजा देने के पक्ष में नही रहते इसलिए वे उनकी बड़ी से बड़ी गलतियों को भी क्षमा कर देते परंतु न जाने क्यों, आश्रम में पढ़ने वाले रोहित के प्रति महर्षि दयानंद का व्यवहार उनके स्वभाव के बिल्कुल विपरीत, काफी कठोर था । वे रोहित की छोटी-छोटी गलतियों पर भी बहुत नाराज हो जाते हैं और परिणामस्वरूप उसे काफी बड़ी सजा दे ढालते । महर्षि का रोहित के प्रति ऐसा व्यवहार सबको हतप्रभ करने वाला था ।
हद तो तब हो गई जब महर्षि ने रोहित की एक छोटी सी गलती पर उसे आश्रम की साफ सफाई का सारा जिम्मा सौप दिया, बस इतना ही नहीं उन्होंने रोहित को अपने जलपान आदि की व्यवस्था भी स्वयं करने का आदेश दे ढाला ।
बेचारा रोहित अब रोज सवेरे चार बजे ही उठकर आश्रम की साफ-सफाई में लग जाता और छुट्टी के बाद, जहां आश्रम के दूसरे बच्चे जलपान के बाद विश्राम कर रहे होते, वहीं थका हारा रोहित अपना भोजन पकाता ।
गर्मियों की छुट्टीया हो रही थी आश्रम के सारे बच्चे अपने अपने घरों को जाने लगे परंतु महर्षि ने रोहित को घर न भेजकर उसे यहीं आश्रम मे रूकने को कहा । इस बात से रोहित बहुत दुखी हुआ । उसने एक छोटी सी पर्ची, चुपके से अपने दोस्त को थमाते हुए कहा "इसे मां को देने देना" चिट्ठी में बस इतना लिखा था..
"मां तुम कब आओगी"
यद्यपि रोहित यहाँ राज्य के दूसरे सामान्य बच्चों के बीच मे रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहा था परंतु वह कोई सामान्य बच्चा नहीं था बल्कि वह तो राज्य के महाराज विक्रम सिंह का इकलौता पुत्र था ।
रोहित का यह खत जब महारानी को मिला तो वो बेटे से मिलने से खुद को रोक नहीं पाई और दौड़े-दौड़े महर्षि के आश्रम जा पहुंची । बरसो बाद एक दूसरे को पाकर दोनों मां-बेटे खूब रोए रोहित ने जब अपनी पीड़ा मां से बताई तब महारानी महर्षि पर बहुत क्रोधित हुई, वो फौरन रोहित का बाहें थामें महर्षि दयानंद के पास जा पहुंची ।
महारानी का दुर्गा सदृश्य यह स्वरूप देख महर्षि दयानंद मुस्कुरा उठे । वे महारानी को लिए आश्रम के सामने स्थित पहाड़ी के समीप जा पहुंचे । वहां पहुंचकर उन्होंने पहाड़ पर स्थित वृक्षों की ओर इशारा करते हुए कहा
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"महारानी, चट्टान पर स्थित उन वृक्षों को देखिए, देखिए वो कितने विचित्र हैं, वैसे तो उनकी लंबाई अन्य दूसरे पेड़ों की तरह ही सामान्य है किंतु उसकी जड़े, तने की लंबाई से कई गुना ज्यादा लंबी होकर, नीचे की तरफ फैली हुई हैं"
"महारानी, क्या ऐसे वृक्ष आपने पहले कभी देखे हैं ?"
(महर्षि ने महारानी से पूछा)
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महारानी "नहीं"
महर्षि "वो इसलिए क्योंकि ऐसे वृक्ष कभी भी समतल वह सामान्य भूमि पर नहीं मिल सकते । ऐसे वृक्ष अक्सर पहाड़ों की चट्टानों पर ही पाए जाते हैं । चट्टानों पर स्थित होने के नाते, इनको अपना भोजन सरलता से नहीं मिल पाता फलस्वरूप ये अपनी जड़ों को आगे और आगे बढ़ाते चले जाते हैं और तब जाकर ये अपने लिए आवश्यक खाद्य पदार्थो का जुगाड़ कर पाते हैं जबकि ये सारी चीजें समतल व सामान्य भूमि पर उगने वाले पौधों को बड़ी ही आसानी से मिल जाती हैं जिसके कारण उनकी जड़े इतनी लम्बी व मजबूत नही हो पाती हैं"
महर्षि दयानंद, महारानी से फिर कहते हैं
महारानी, चूँकि रोहित राज्य के भावी युवराज हैं और राज्य के भावी भविष्य को सामान्य के साथ-साथ विशेष परिस्थितियों का भी अनुभव होना आवश्यक है ताकि समय आने पर वो किसी भी परिस्थिति का सामना सरलता से कर सकें ।
जहां आसान परिस्थितियां हमें जीवन का आनंद दिलाती हैं, वहीं कठिन परिस्थितियां हमारे अंदर नई क्षमता एवं गुणों का विकास करती है इसीलिए, कठिनाइयों से कभी भी हार नही मानना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार सोना आग में तप कर कुंदन बनता है ठीक उसी प्रकार कठिनाइयों का सामना करके ही कोई सामान्य व्यक्ति गुणवान बन सकता है और अपने अंदर नहीं क्षमताएं जागृत कर सकता है जो मुश्किल वक्त में उसके लिए उपयोगी साबित होंगी !
कहानी से शिक्षा | Moral Of This Short Inspirational Story In Hindi
जहां आसान परिस्थितियां हमें जीवन का आनंद दिलाती हैं, वहीं कठिन परिस्थितियां हमारे अंदर नई क्षमता एवं गुणों का विकास करती है इसीलिए, कठिनाइयों से कभी भी हार नही मानना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार सोना आग में तप कर कुंदन बनता है ठीक उसी प्रकार कठिनाइयों का सामना करके ही कोई सामान्य व्यक्ति गुणवान बन सकता है और अपने अंदर नहीं क्षमताएं जागृत कर सकता है जो मुश्किल वक्त में उसके लिए उपयोगी साबित होंगी !
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