कोमौलिका अपने माता-पिता की बड़ी लाडली बेटी थी । कमौलिका के माता पिता एक सेठ के वहां पैकिंग का काम किया करते थे । वे सेठ की दुकान से अनाज की बोरियां लाते और फिर उसे छोटे-छोटे प्लास्टिक के थैलों में पैक करके उसे सेठ की दुकान पर वापस दे आया करते । सेठ उन्हें इस काम के बदले कुछ पैसे दिया करता, जिससे उनका जीवन यापन बहुत अच्छे से हो जाता । कमौलिका के माता पिता इस काम में कभी-कभार उसकी भी मदद लिया करते थे ।
एक बार जब कमौलिका सेठ की दुकान पर, पैकिंग का माल देने पहुंची तो हमेशा की तरह दुकानदार ने पैकिंग के पैसे कमौलिका को दिए । कमौलिका ने जब उन पैसों को गीना तो उसमें 20 रुपए ज्यादा थे । कमौलिका ने फौरन वो 20 रुपए, दुकानदार को लौटा दिए ।
कमौलिका की इस ईमानदारी से सेठ बहुत प्रभावित हुआ । वह अब उसे अपनी बेटी की तरह लाड प्यार करता और उस पर बहुत ज्यादा भरोसा भी करता ।
एक दिन दुकानदार ने अपनी गलती दोबारा दोहराते हुए फिर उसे 50 रूपए ज्यादा दे दिए परंतु इस बार कमौलिका का ईमान डगमगा गया । उसने उन पैसों को लौटाने की बजाए, अपने पास रख लिया और वहां से घर चली आई । उसने उन पैसों से खूब सारी मस्ती भी की ।
चूंकि दुकानदार कमौलिका पर बहुत ज्यादा भरोसा करता इसलिए वह कमौलिका को दिए पैसों को ज्यादा ध्यान से नहीं गिनता, वह ज्यादातर उन पैसों को एक बार ही गिन कर दे दिया करता । जिसका फायदा कमौलिका उठाया करती ।
एक दिन न जाने क्यों सेठ को कमौलिका की ईमानदारी पर कुछ शक हुआ । उसने जानबूझकर कमौलिका को 50 रूपए ज्यादा दिए और कहा
"गिन लो बेटा कहीं ये पैसे कम तो नहीं"
कमौलिका उन पैसों को बड़े ध्यान से गिनने के बाद कहती है
"नहीं अंकल पैसे पूरे हैं"
सेठ एक बार फिर कहता है
"पता नहीं क्यों मुझे पैसे कम लग रहे हैं, तुम इन्हें जरा दोबारा से गिन कर देखो"
कमौलिका उन पैसों को एक बार फिर से गिनती है, और कहती है
"अंकल पैसे बराबर हैं"
ऐसा कहकर वह काफी तेजी से वहां से निकल पड़ती है तब सेठ उसे अपने पास बुलाकर उन पैसों को खुद दोबारा से गिनता है और उसमें से 50 की एक नोट निकालते हुए उससे कहता है
"बेटा इसमें तो ये 50 रुपए ज्यादा है"
यह देख कमौलिका का सांप सूंघ जाता है । कमौलिका की स्थिति बस देखते ही बनती है ।
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