How to Motivate Your Kids - Story in Hindi
"मैं तो तंग आ गई हूं इन बच्चों से, एक तो सुबह-सुबह अपनी नींद खराब करके इनके लिए इनका मनपसंद लंच बनाओ और ये हैं कि मेरी सारी मेहनत पर पानी फेरते हुए जरा भी नहीं सोचते । कोई आधा-अधूरा खाकर, तो कोई पूरा का पूरा लंच वापस ले आता है । जी तो करता है कि इन्हें कुछ भी ना दूं जब दो दिन भूख से छटपटाएगे तब सारी अक्ल खुल जाएगी । मगर क्या करूं मां हूं ना, नही कर सकती"
तीन बच्चो की मां श्रद्धा जिसके तीनो बच्चे उम्र में अभी बहुत छोटे हैं लिहाजा उम्र के हिसाब से बचपना भी उनमें कूट-कूट कर भरा है हालांकि श्रद्धा बच्चों की पढ़ाई लिखाई और उनके खाने पीने का बहुत ख्याल रखती है । वह रोज सुबह उठकर अपने तीनों बच्चों के लिए, उनकी पसंद के हिसाब से अलग-अलग नाश्ता व लंच तैयार करती है परंतु बच्चे हैं कि मां की कड़ी मेहनत को जरा भी नही समझते । श्रद्धा बच्चों के इस व्यवहार से अक्सर इरिटेट हो जाती है और गुस्से में न जाने क्या-क्या उन्हे सुना देती है परंतु बच्चों पर मां की इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता ।
एक दिन जब रोज की तरह अलार्म के बजने पर श्रद्धा उठकर बच्चों को तैयार करने के लिए कमरे से बाहर निकलती है तभी तबातोड़ फूटते गुब्बारों की आवाज से वह चौक जाती है । उसके सामने तीनों नन्हे-मुन्ने अपने हाथों में गुलदस्ता, विशिंग कार्ड वह केक लिए हुए खड़े हैं और उसे जन्मदिन की मुबारकबाद दे रहे हैं बच्चों का यह स्नेह श्रद्धा देखते ही रह जाती है ।
आज के इस खास मौके पर श्रद्धा ने डिनर का खास इन्तजार किया है । उसने आज हर एक के पसंद के हिसाब से भिन्न-भिन्न पकवान बनाए हैं जिसे वह डाइनिंग टेबल पर बच्चों की थालियों में परोस रही है । उन पकवानों को देखकर बच्चो के मुंह में पानी आ रहा है परंतु एक ओर जहां सबकी थालियां पकवानों से भर गई हैं वहीं दूसरी ओर श्रद्धा की थाली बिल्कुल खाली है जिसे देख नन्हे-मुन्ने उससे बोल उठते हैं
"मां आज ऐसा नहीं चलेगा । आज तो आपको हमारे साथ ही डिनर करना होगा क्योंकि आज आपका हैप्पी वाला बर्थडे है, वरना हम भी यहां बैठकर आपका वेट करेंगे और तब तक कुछ नहीं खाएंगे जब तक आप नहीं आ जाते"
श्रद्धा बच्चों की इन प्यार भरी, मीठी-मीठी बातों को सुनकर मुस्कुरा देती है और कहती है
"अच्छा, तुम सब शुरू करो मैं आती हूं"
थोड़ी देर में श्रद्धा तीनों बच्चों का बैग लिए वहां आती है । वह बैग में से उनका लंच बॉक्स निकालकर डाइनिंग टेबल पर रखने लगती है और फिर एक-एक करके सभी लंच बॉक्स में बचे खाने को अपनी प्लेट में रखकर खाने लगती है । मां को ऐसा करता देख बच्चे आश्चर्यचकित रह जाते हैं । वे आंखों ही आंखों में एक दूसरे से कुछ सवाल भी कर रहे हैं और आखिरकार वो मां से पूछ बैठते हैं
"ये क्या कर रही हो मां, आज तुम्हारा जन्मदिन है फिर आज के दिन तुम ये बासी खाना क्यूं खा रही हो, बताओ"
"मैंने यह तय किया है कि आज से तुम सब जो लंच बचाकर लाओगे, मैं डिनर में सबसे पहले उसे ही खाऊंगी, उसके बाद यदि भूख रही तो कुछ खाऊंगी वरना वही खाकर रह जाऊंगी"
(श्रद्धा बच्चो से कहती है)
मां की बातों को सुनकर सारे बच्चे चौक जाते हैं । वे अपनी गलतियों के लिए मां से न सिर्फ माफी मांगने लगते हैं बल्कि दोबारा कभी लंच बचाकर न लाने का प्रॉमिस भी कर रहे हैं परंतु श्रद्धा किसी की नहीं सुनती वह अपनी बातो पर अडिग रहती है ।
श्रद्धा के इस कदम से बच्चों में इतना परिवर्तन आता है कि उन्होंने आगे कभी भी अपना लंच बचाकर नहीं लाया ।
अपने बच्चों को मोटिवेट कैसे करें - कहानी से शिक्षा
दोस्तों ये ट्रिक्स छोटी जरूर हैं परंतु हैं बड़ी काम की । कभी-कभी जहां तलवार से काम नहीं बनता वहां सुई काम कर जाती है । यदि आपको ऐसा नहीं लगता तो आप आजमा कर देख सकते हैं । मुझे यकीन है कि आपको अपने मकसद में कामयाबी हासिल होगी । किसी भी समस्या से परेशान होने की बजाय उसका हल ढूंढने की कोशिश करें हो सकता है कि आपका एक छोटा सा कदम आपकी किसी बड़ी समस्या को दूर कर सके !
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