ग़ज़ल ****** दिलों पर जब से आतिश हो रही है निग़ाहों की गुज़ारिश हो रही है ज़माना चाहता है मौत लेकिन मुझे जीने की ख़्वाहिश हो रही है ख़ुदा के नाम पर सब मज़हबों में इबादत की नुमाइश ही रही …
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