शुभम और कृतिका की अरेंज मैरिज होती है । शादी के बाद दोनों में प्यार बहुत रहता है । दोनों को देख कर लगता ही नहीं कि इनकी अरेंज मैरिज हुई है ऐसा लगता है, मानो उन्होंने प्रेम विवाह किया हो । शुभम काफी ज्यादा मिलनसार स्वभाव का था चाहे अजनबी हो या जाना पहचाना सबसे मुस्कुराकर हंस कर बातें करना उसका नेचर था ।
लड़को तक तो ठीक था पर लड़कियों से इस प्रकार से मिलना-जुलना, कृतिका को जरा भी रास नहीं आता था। वह अक्सर इन बातों को लेकर शुभम से झगड़ती रहती थी शुभम कृतिका की इन बातों को हंसकर टाल दिया करता था। कृतिका की शक करने की आदत घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही थी ।
एक दिन वह दोनों मॉल में शॉपिंग कर रहे थे। इसी दौरान शुभम की कालेज टाइम फ्रेंड दीपाली से मुलाकात हो जाती है दोनों मैं खूब बातें होने लगती हैं । उनकी नजदीकी जाने क्यों कृतिका को कुछ ज्यादा ही खटकने लगती है। वह दीपाली के बारे में पता लगाने की सोचती है। उसे पता चलता है कि, दीपाली तो शुभम की एक्स-गर्लफ्रेंड है यह जानकर कृतिका का पारा हाई हो जाता है। वह बड़ी ही बेसब्री से शुभम के लौटने का वेट कर रही है । मेन गेट तो कभी दीवार पर टंगी घड़ी की सुइयों पर कृतिका की नजर टिकी हुई है।
आज कृतिका शुभम से सबूतों के साथ उसके चेहरे से शराफत का नकाब हटाने वाली है। आखिरकार घंटों के इंतजार के बाद शाम के करीब 6:00 बजते-बजते शुभम घर में दाखिल होता है अभी वह आकर सोफे पर बैठकर गहरी सांस भरता है कि सामने उसे किसी व्यक्ति के खड़े होने का आभास होता है सामने कमर पर हाथ ताने कृतिका आंखें लाल किए खड़ी है। कृतिका का यह रूद्र रूप शुभम ने पहले कभी नहीं देखा था अभी शुभम कुछ पूछता तब तक कृतिका बोल पड़ती है ।
लड़को तक तो ठीक था पर लड़कियों से इस प्रकार से मिलना-जुलना, कृतिका को जरा भी रास नहीं आता था। वह अक्सर इन बातों को लेकर शुभम से झगड़ती रहती थी शुभम कृतिका की इन बातों को हंसकर टाल दिया करता था। कृतिका की शक करने की आदत घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही थी ।
एक दिन वह दोनों मॉल में शॉपिंग कर रहे थे। इसी दौरान शुभम की कालेज टाइम फ्रेंड दीपाली से मुलाकात हो जाती है दोनों मैं खूब बातें होने लगती हैं । उनकी नजदीकी जाने क्यों कृतिका को कुछ ज्यादा ही खटकने लगती है। वह दीपाली के बारे में पता लगाने की सोचती है। उसे पता चलता है कि, दीपाली तो शुभम की एक्स-गर्लफ्रेंड है यह जानकर कृतिका का पारा हाई हो जाता है। वह बड़ी ही बेसब्री से शुभम के लौटने का वेट कर रही है । मेन गेट तो कभी दीवार पर टंगी घड़ी की सुइयों पर कृतिका की नजर टिकी हुई है।
आज कृतिका शुभम से सबूतों के साथ उसके चेहरे से शराफत का नकाब हटाने वाली है। आखिरकार घंटों के इंतजार के बाद शाम के करीब 6:00 बजते-बजते शुभम घर में दाखिल होता है अभी वह आकर सोफे पर बैठकर गहरी सांस भरता है कि सामने उसे किसी व्यक्ति के खड़े होने का आभास होता है सामने कमर पर हाथ ताने कृतिका आंखें लाल किए खड़ी है। कृतिका का यह रूद्र रूप शुभम ने पहले कभी नहीं देखा था अभी शुभम कुछ पूछता तब तक कृतिका बोल पड़ती है ।
"कल जो लड़की तुम्हें माल में मिली थी.... अरे जिससे तुम मुंह फाड़-फाड़ के बातें कर रहे थे.... उसे तुम कैसे जानते हो"
अभी शुभम कुछ कहे उससे पहले कृतिका ने फिर उसे टोक दिया
अभी शुभम कुछ कहे उससे पहले कृतिका ने फिर उसे टोक दिया
" बताओ बताओ... चुप क्यों हो"
शुभम "अरे मुझे बोलने दोगी तब तो मैं तुम्हें कुछ बताऊंगा.... अपनी ही हाके जा रही हो"
कृतिका तेजश्वर में "अच्छा ठीक है मैं नहीं बोलती तुम बताओ"
शुभम "वह मेरी कॉलेज टाइम मैं एक अच्छी दोस्त थी धीरे धीरे हम दोनों में प्यार हो गया और इसी बीच मेरी जॉब लग गई मैं इधर चला आया और उधर उसकी शादी किसी और से हो गई"
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कृतिका "अच्छा तो यह माजरा है... मतलब तुम्हारी गर्लफ्रेंड भी है"
शुभम "देखो कृतिका मैं तुम्हारे आज में विश्वास रखता हूँ क्योंकि हर किसी का पास्ट होता है जिसको लेकर नाराजगी पालने से सिवाय नुकसान के कुछ नहीं मिलता तुम मेरा आज और अब तुम ही मेरा सब कुछ हो..... मेरी दोस्त मेरी गर्लफ्रेंड मेरी जीवनसंगिनी सब कुछ"
मगर कृतिका तो जैसे शुभम से आज लड़ने का मन बना ली थी वह हर बात पर बस झगड़ती जा रही थी अंत में मजबूरन शुभम को कृतिका से कहना ही पड़ा
शुभम "देखो कृतिका मैंने कहा ना हर किसी का पास्ट होता है... मेरा भी था और तुम्हारा भी..... मुझे पता है कि तुम अपने बचपन के मित्र राजीव से बहुत प्यार करती थी और घरवालों के मर्जी के खिलाफ तुमने राजीव के साथ भागकर शादी का मन बनाया तुम तो उसके साथ भागने के लिए निकल पड़ी पर वह नहीं आया और तुम्हें उल्टे पांव घर वापस लौटना पड़ा"
कृतिका शुभम से ये सच सुनकर स्तब्ध रह गई । कृतिका "तुम यह सब जानते थे फिर भी"
कृतिका शुभम से ये सच सुनकर स्तब्ध रह गई । कृतिका "तुम यह सब जानते थे फिर भी"
शुभम "हां कृतिका मुझे तुम्हारे पास्ट से कुछ भी लेना देना नहीं क्योंकि जिंदगी आज मैं जीने का नाम है"
कृतिका की आंखों में पश्चाताप की धारा बह निकलती है। शुभम खुशी-खुशी कृतिका को गले लगा लेता है ।
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