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आत्मविश्वास की शक्ति प्रेरक कहानी | Best Story On Power Of Self Belief
दो मिनट और तीन गोल क्या ऐसा कर पाएगी रियल चैलेंजर्स कि ये टीम ? क्या ये अपने पुराने जीत के इतिहास को दोहरा पाएंगी ? काफी मुश्किल लग रहा है सबकी निगाहें टीम के कप्तान पर टिकी हैं । जब से योगेंद्र ने टीम की कप्तानी संभाली है तब से लेकर आज तक यह चैंपियनशिप, रियल चैलेंजर्स की टीम कभी भी नही हारी तो क्या आज फिर से कोई चमत्कार दर्शको को यहां देखने को मिलेगा ।
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मैच का अंतिम दो मिनट का समय शुरू हो चुका है । योगेंद्र तो अभी तक बॉल के पास तक नहीं पहुंच सका है । परंतु कुछ ही क्षणों मे एक तूफान सरीखा रूप इख्तियार कर योगेंद्र गेंद के पीछे आता है और देखते ही देखते विरोधी खिलाड़ीयों से जूझते हुए गेंद को अपने पाले मे करने मे वह कामयाब हो जाता है ।
दो गोलों से पीछे चल रही रियल चैलेंजर्स की टीम जो काफी मायूस हो चली थी, कप्तान के इस कमबैक से फिर से जोश मे लौट आयी है और फिर देखते ही देखते रियल चैलेंजर्स के कप्तान ने 1 मिनट के अंदर ही दो गोल दागकर अपनी टीम को बराबरी में ला खड़ा कर दिया ।
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अब तो हार की कोई संभावना ही नहीं बची थी परंतु जीतने के लिए अभी भी एक गोल की की आवश्यकता थी मगर मैच खत्म होने में केवल एक मिनट का समय शेष था । दोनों ही टीमें इस आखिर मिनट में मे गोल करने की पूरी कोशिश में लग गई हैं ।
मगर आखिरकार इतिहास ने खुद को फिर से दोहराया कप्तान की कोशिशें रंग लाई और रियल चैलेंजर्स ने एक आखरी गोल दागकर मैच को अपने पक्ष में कर लिया है और इस प्रकार से रियल चैलेंजर्स, इस बार भी चैंपियनशिप का हकदार बन गया ।
हाथ में योगेंद्र की फोटो लिए उसकी पत्नी, इस मैच के उन रोमांचक क्षणों को याद कर रही है जिसे उसने स्टेडियम में बैठकर एक दर्शक के रूप में कभी, लाइव देखा था हालांकि तब योगेंद्र उसका पति नही बल्कि उसका ब्वॉयफ्रेंड हुआ करता था आज योगेंद्र को गए एक अरसा होने को है। मगर उसे अपने पति की वो साहसिक पारी आज भी याद है ।
विवाह के बाद योगेंद्र द्वारा पत्नी को दिया गया तोहफा यानी उसका बेटा मनोज अब बड़ा हो चुका था । कद काठी से वह बिल्कुल अपने पिता पर गया था । वह पिता की तरह ही एकदम लंबा और गोरा था । सब कुछ उसमे पिता जैसा होने के बावजूद उसमें एक चीज की कमी थी और वो था साहस, उसमें अपने पिता जैसा साहस बिल्कुल भी नहीं था ।
वह किसी भी काम को पूरे मन से करने की कोशिश जरूर करता है मगर आखिर मे उसे असफलता ही हाथ लगती जिसके कारण उसके अंदर निराशा हाबी होने लगी ।
बार-बार मिल रही असफलताओ से उसे इस बात का यकीन हो चला कि वह कोई भी बड़ा काम नहीं कर सकता वह अपने पिता जैसा बिल्कुल भी नहीं है । उसमें वह क्षमता है ही नहीं है जो किसी महान व्यक्ति में होती है ।
हालांकि उसकी माँ उसे उसके पिता की तरह ही एक अच्छे फुटबॉलर के रूप मे देखना चाहती थी परंतु उसे अपने अंदर एक सामान्य लड़के की झलक नजर आने लगी जो सिर्फ सामान्य काम करने के लिए बना था । बड़ी-बड़ी इच्छाएं रखना और उनके सपने देखना उसके बस में जरूर है मगर उसे पूरा कर पाना उसके बस की बात नही ।
वैसे तो पिता ने मरने से पहले एक फुटबॉलर के रूप में काफी अच्छा पैसा कमाया था । मगर अब उन जमा पैसों मे ज्यादा कुछ नहीं बचा है ऐसे में उसकी माँ उसे बार-बार समझाती है कि
"देखो बेटा हमारे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं ऐसे में तुम्हें अपना भविष्य बनाने के लिए कुछ तो कड़ी मेहनत करनी ही होगी । हम जैसे लोगों के लिए फुटबॉल एक अच्छा विकल्प है इसमें कड़ी मेहनत करके तुम अपना भविष्य संवार सकते हो । दुनिया में और भी बहुत सारे काम है मगर मुझे लगता है कि उनके लिए ज्यादा पैसों की आवश्यकता होगी । मगर जहां तक फुटबॉल का सवाल है इसमें सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी मेहनत की आवश्यकता है "
माँ की ऐसी बातों को सुनकर मायूस बेटे में हर बार एक नया जोश भर जाता है । मगर जब भी वह ग्राउंड मे उतरता है तो आखिर में उसे फिर वही निराशा हाथ लगती है ।
काफी दिनों से खेल रहे बेटे के अभी भी खेल में बहुत कच्चा होने के कारण उसके सभी दोस्त उसपर हंसते हैं और चैंपियन-चैंपियन कहके चिढ़ाते हैं ।
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उन सबके के रोज-रोज के मजाक से तंग आकर आखिरकार मनोज फुटबॉल को सदा के लिए अलविदा कहने का निश्चय कर लेता है ।
जब यह बात उसकी माँ को पता चलती है तब वह उसे बहुत समझाती हैं परंतु कभी माँ की बातों से प्रेरित होकर नए जोश से भर जाने वाले मनोज पर माँ की बातों का आज कोई असर नहीं हो रहा था । धीरे-धीरे उसे फुटबॉल छोड़े काफी वक्त गुजर जाता है परंतु उसका मन घूम फिर के फुटबॉल मे ही लगा रहता। जैसे ही कोई फुटबॉल खेलता उसे नजर आता उसके कदम वहीं के वहीं ठहर जाते । उन्हें खेलता देखकर उसमे दुबारा से खेलने की इच्छा जाग जाती है ।
एक दिन जब वह बिस्तर पर लेटे लेटे कुछ सोच रहा था तभी उसका ध्यान सामने दीवार पर टंगी अपने पिता की फोटो पर गयी । जिसमें उसके पिता जीत की ट्रॉफी अपने हाथों में लिए अपने सभी खिलाड़ियों के साथ खड़े हैं । मनोज के पास अपने पिता की बस यही एक तस्वीर थी जिसे वह बचपन से देखता आया था उसने कभी अपने पिता को प्रत्यक्ष रूप से कभी नही देखा था क्योंकि उसके पिता, उसके जन्म से पहले ही उसे छोड़ गए थे ।
आज अचानक उसकी नजर तस्वीर में पिता के हाथ पर बधे एक लाल धागे पर पड़ी जो कुछ अजीब था । उसे देखकर उसके मन में कुछ सवालों ने जन्म लिया । जिसका जबाब जानने के लिए उसने अपनी माँ को बुलाया और माँ से उसने, अपने पिता के हाथों पर बधे उस लाल धागे का राज जानना चाहा । तब माँ ने बताया कि
"बचपन में तुम्हारे पिता अपने दोस्तों के साथ पहाड़ों पर घूमने गए थे । जब वे वहां अपने दोस्तों के साथ घूम रहे थे तभी उन्हें किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी । तुम्हारे पिता और उनके दोस्त दौड़कर जब वहां पहुंचे तब उन्होंने देखा कि पहाड़ की चोटी से फिसल कर एक साधु महाराज नीचे खाई की ओर लटके पड़े है । तुम्हारे पिता ने जान पर खेलकर उनकी जान बचाई । जिससे साधु महाराज काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पास से एक लाल धागा तुम्हारे पिता को दिया और कहा कि
"तुम सदैव इस लाल धागे को अपने हाथ पर बांधे रखना यह लाल धागा तुम्हारी किस्मत चमकाने में तुम्हारी काफी मदद करेगा, तुम्हारे पिता की माने तो साधु की कही बातों में वाकई सच था । उस लाल धागे को अपने हाथ पर बांधने के बाद उन्होंने ढेरों सफलताएं हासिल की.. उन्हें कभी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ा"
अपनी माँ से ये सारी बातें सुनकर उसे उस चमत्कारिक लाल धागे को पाने की इच्छा हुई । उसने माँ से पूछा
"तो माँ उस लाल धागे का क्या हुआ, क्या वह भी पिताजी के साथ .. .?"
"नहीं-नहीं तुम्हारे पिताजी के हर सामान को उनके जाने के बाद मैंने काफी संभाल कर बक्से मे रखा है सम्भवतः वह लाल धागा भी उनके दूसरे सामानों के साथ उसी बक्से में सुरक्षित पड़ा होगा"
तब मनोज ने कहा
"माँ मुझे वह धागा चाहिए"
माँ ने कहा
"ठीक है बेटा मैं अभी निकाल कर तुम्हें देती हूँ"
ऐसा कहने के बाद माँ पिताजी के पुराने बक्से के पास गई । जिसमें उसने मनोज के पिता के सारे सामान को बिल्कुल संभाल कर रखे थे । काफी ढूंढने के बाद बक्से मे रखे दूसरे सामानो के बीच वह लाल धागा मां को मिला जैसे ही मां ने उस लाल धागे को हाथों में लिया मनोज तेजी से उसपर झपट पड़ा । मानो उसने कुछ और नही बल्कि अपनी किस्मत का धागा पा लिया हो, उस धागे को उसने तुरंत माँ से अपने हाथ पर बधवाकर ग्राउंड की ओर चल पड़ा ।
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जहां उसके सभी दोस्त फुटबॉल खेलने में लगे थे । बहुत दिनों बाद ग्राउंड में मनोज को आता देख सभी दोस्तों ने उसे चैंपियन-चैंपियन कह कर उसे चढ़ाना शुरू कर दिया । मगर आज उनकी बातों का मनोज पर जरा भी असर नहीं पड़ रहा था । उसमे, उस लाल धागे के नाते एक नया विश्वास साफ झलक रहा था ।
उसने ग्राउंड में आते ही उस लाल धागे को चुम्मा और फिर फुटबॉल की तरफ दौड़ पड़ा । आज वह सबके लिए एक नया मनोज था । जोश और आत्मविश्वास से लबरेज मनोज, जिसे पछाड़ पाना हर किसी के लिए मुश्किल साबित हो रहा था । आज की सफलता ने मनोज के अंदर लाल धागे के प्रति पूर्ण विश्वास से भर दिया ।
अब तो वह 24 घंटे उस लाल धागे को हाथों पर बांधे रहता । देखते ही देखते मनोज एक पेशेवर खिलाड़ी बन गया । उसे अपने पिता की विरासत वापस मिल गई थी अब वह रियल चैलेंजर्स टीम का कप्तान बन चुका था । कुछ ही दिनो बाद विश्वस्तरीय चैंपियनशिप शुरू हो गई इस प्रतियोगिता के सभी मैचों में रियल चैलेंजर्स की टीम ने सफलता हासिल कर फाइनल में अपना स्थान पक्का कर लिया ।
फाइनल मैच से पहले मनोज अपने घर आया और अपनी माँ को मैच देखने के लिए स्टेडियम चलने का अनुरोध करने लगा । मनोज की माँ को आज फिर वही पुराने दिन याद आने लगा । जब वह मनोज के पिता को मैच खेलते देखने के लिए स्टेडियम में जाया करती थी हालांकि तब वह युवा हुआ करती थी । आज वह वक्त के साथ-साथ वह काफी बूढ़ी हो चुकी थी ।
मगर ऐसा मौका जीवन मे बार-बार नही आता यही सोचकर, माँ फौरन बेटे के साथ स्टेडियम चलने को तैयार हो गई । इतिहास एकबार फिर खुद को दोहरा रहा था । मैच शुरू हो चुका था । मैच की शुरुआत से ही मनोज काफी आक्रामक फॉर्म में था । आज उसे अपने अंदर अपने पिता दिखाई दे रहे थे ।
वही जमीन थी वही आसमान, बस फर्क इतना था कि बाप के कदमों की जगह बेटे के कदमों ने ले ली थी ।
देखते ही देखते मैच काफी रोमांचक स्थिति मे पहुंच गया । दोनों ही टीमें एक-एक गोल करके बराबरी पर चल रही थी मगर दूसरे हाफ मे रियल चैलेंजर्स टीम के कुछ खिलाड़ियों की छोटी-छोटी गलतियां के कारण विरोधी टीम 3-1 की बढ़त बनाने में कामयाब हो गई हालांकि इस बढ़त को घटाने के लिए मनोज ने एड़ी से चोटी तक का दम लगा दिया । मगर स्कोर जस का तस बना रहा इसी के साथ वक्त भी धीरे-धीरे खत्म होने लगा ।
अब एक बार फिर वही स्थिति सामने थी दो मिनट और तीन गोल बस फर्क यह था कि तब टीम की कमान योगेंद्र के हाथों में थी और आज टीम की कप्तानी मनोज कर रहा था । इस सिचुएशन को देखते ही मनोज की माँ को उसके पिता के उस मैच की याद आ गई । बस फिर क्या था, मनोज ने वह लाल धागा चुम्मा और बॉल की तरफ दौड़ पड़ा । अंतिम 3 मिनट के खेल में उसने वो साहस और पराक्रम का दर्शन कराया जिसके सामने विरोधी टीम की सारी योजनाए धरी की धरी रह गई । कभी उसे चैंपियन-चैंपियन कह के चिढ़ाने वाले उसके दोस्त दोनों हाथों से तालियां बजाकर उसे चैंपियन-चैंपियन कहे जा रहा थे । आखिरकार मनोज ने 2 मिनट में तीन गोल दागकर एक बार फिर से इतिहास को अपने नाम कर लिया । रियल चैलेंजर्स की टीम ने चैंपियनशिप जीत ली ।
अब एक बार फिर वही स्थिति सामने थी दो मिनट और तीन गोल बस फर्क यह था कि तब टीम की कमान योगेंद्र के हाथों में थी और आज टीम की कप्तानी मनोज कर रहा था । इस सिचुएशन को देखते ही मनोज की माँ को उसके पिता के उस मैच की याद आ गई । बस फिर क्या था, मनोज ने वह लाल धागा चुम्मा और बॉल की तरफ दौड़ पड़ा । अंतिम 3 मिनट के खेल में उसने वो साहस और पराक्रम का दर्शन कराया जिसके सामने विरोधी टीम की सारी योजनाए धरी की धरी रह गई । कभी उसे चैंपियन-चैंपियन कह के चिढ़ाने वाले उसके दोस्त दोनों हाथों से तालियां बजाकर उसे चैंपियन-चैंपियन कहे जा रहा थे । आखिरकार मनोज ने 2 मिनट में तीन गोल दागकर एक बार फिर से इतिहास को अपने नाम कर लिया । रियल चैलेंजर्स की टीम ने चैंपियनशिप जीत ली ।
आखरी गोल दागने के बाद हर बार की तरह इस बार भी मनोज अपनी माँ को देखने के लिए जैसे ही पीछे मुड़ा वह आश्चर्यचकित रह गया, स्टेडियम के दूसरे छोर पर खड़ी मां के हाथों में वह लाल धागा झूल रहा था । उसे देखते ही मनोज के चेहरे का रंग बदल गया । उसने फौरन अपने हाथों में बांधे उस लाल धागे की ओर निगाहे दौड़ाई मगर वह लाल धागा तो उसके हाथों में था ही नहीं । शायद इस मैच के दौरान वह पहले ही खुलकर गिर चुका था ।
वह अपने सभी साथी खिलाड़ियों को छोड़ माँ की तरफ बढ़ा । माँ के पास पहुंचकर अभी वह कुछ कहता की तभी मां ने कहां
"क्या तुम्हें समझ आया कि असल ताकत लाल धागे में नहीं बल्कि तुम्हारे सोच में है, इस लाल धागे ने तुम्हारे अंदर सिर्फ एक विश्वास भरा और उस विश्वास की शक्ति ने तुम्हें आज कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया । तुम वही मनोज हो जो कभी इस फुटबॉल को अलविदा कह चुके थे । तुम मान चुके थे कि तुम इस खेल के लिए कभी बने ही नहीं थे । तुम्हारे अंदर इस खेल के लिए जिन गुणों का होना आवश्यक है वह तुम्हारे अंदर है ही नहीं फिर तुम कैसे आज इतने सफल फुटबॉलर बन गए ? तुम्हें लगा कि बस यह लाल धागा ही तुम्हें आज तक जीत दिलाता आया है जबकि यह लाल धागा तो दो मिनट और तीन गोल की दौड़ में जाने कब का तुम्हारी कलाई से खुलकर गिर चुका था । मगर मैंने तुम्हें जानबूझकर नहीं बताया क्योंकि मैं जानती थी कि तुम किसी चमत्कारी धागे की वजह से नहीं बल्कि अपने आत्मविश्वास और दृढ निश्चय के कारण जीत रहे हो । जब किसी काम को आजमाने की बजाय उसे पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय के साथ किया जाता हैं तो उस काम में सफलता अवश्य मिलती है "
वह अपने सभी साथी खिलाड़ियों को छोड़ माँ की तरफ बढ़ा । माँ के पास पहुंचकर अभी वह कुछ कहता की तभी मां ने कहां
"क्या तुम्हें समझ आया कि असल ताकत लाल धागे में नहीं बल्कि तुम्हारे सोच में है, इस लाल धागे ने तुम्हारे अंदर सिर्फ एक विश्वास भरा और उस विश्वास की शक्ति ने तुम्हें आज कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया । तुम वही मनोज हो जो कभी इस फुटबॉल को अलविदा कह चुके थे । तुम मान चुके थे कि तुम इस खेल के लिए कभी बने ही नहीं थे । तुम्हारे अंदर इस खेल के लिए जिन गुणों का होना आवश्यक है वह तुम्हारे अंदर है ही नहीं फिर तुम कैसे आज इतने सफल फुटबॉलर बन गए ? तुम्हें लगा कि बस यह लाल धागा ही तुम्हें आज तक जीत दिलाता आया है जबकि यह लाल धागा तो दो मिनट और तीन गोल की दौड़ में जाने कब का तुम्हारी कलाई से खुलकर गिर चुका था । मगर मैंने तुम्हें जानबूझकर नहीं बताया क्योंकि मैं जानती थी कि तुम किसी चमत्कारी धागे की वजह से नहीं बल्कि अपने आत्मविश्वास और दृढ निश्चय के कारण जीत रहे हो । जब किसी काम को आजमाने की बजाय उसे पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय के साथ किया जाता हैं तो उस काम में सफलता अवश्य मिलती है "
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इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
सफलता के लिए सिर्फ और सिर्फ जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह है विश्वास, सफलता का विश्वास !
Success के लिए most important है खुद पर किया गया विश्वास । एक ऐसा अटूट Faith जो बार-बार Failure होने के बावज़ूद भी हमारे अंदर कभी जोश कम नहीं होने देता जो हमेशा हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार करता है जो हमेशा हमें Successful होने की लगातार कोशिश करते रहने के लिए प्रेरित करता है जो यह बताता है कि लक्ष्य हमारे लिए बिल्कुल भी Difficult नहीं है यह Belive हम चाहे लाल धागे से पैदा करे या किसी और माध्यम से अगर कोई बात इन सब में common है तो वह है विश्वास सफलता का विश्वास सफलता का अटूट विश्वास जिसके दम पर बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना किया जा सकता है और Success हासिल की जा सकती है ।
अगर यह विश्वास जरा भी कम पड़ा तो हमारे Success के chances उतना ही कम हो जाते है । इस Hindi Story में हमने देखा कि मनोज को कभी अपने अच्छे Footballer होने का बिल्कुल भी विश्वास नहीं था । वह मेहनत तो खूब करता था मगर विश्वास के साथ नहीं हमेशा आधे-अधूरे मन से ही उसने कोशिश की जिसकी वजह से उसे हमेशा Failure मिली । उसने यहां तक सोच लिया कि वह कभी अच्छा फुटबॉलर बन नही सकता वह तो फुटबॉल के लिए बना ही नहीं है । मगर जब वह लाल धागा उसके हाथ लगा तब उसे अचानक अपनी Success का विश्वास हो गया और मात्र यही विश्वास उसे फर्श से अर्श तक ले आया ।
हमें भी अपने अंदर एक ऐसा ही विश्वास जगाना होगा कोई भी काम मुश्किल नहीं है । हम जिस लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं उसमें चाहे लाख बाधाएं आए । मगर आखिरकार सफलता हमें जरूर मिलेगी । जब इस दृढ़ निश्चय के साथ हम किसी लक्ष्य का पीछा करेंगे तो दोस्तों यकीनन उसमें हमें सफलता जरूर मिलेगी
सफलता के लिए जो एक बात सबसे जरूरी है वह है विश्वास को बनाए रखें । इसे कभी कम न होने दें ।
सफलता के लिए जो एक बात सबसे जरूरी है वह है विश्वास को बनाए रखें । इसे कभी कम न होने दें ।
Writer
Karan "GirijaNandan"
With
Team MyNiceLine.com
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