इकरार | Heart Touching Short Love Story In Hindi

       मुकेश के पिता रंजीत काफी दिनों से बीमार चल रहे थे, बीमार पिता की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी मुकेश पर थी । माँ के चले जाने के बाद दोनों के बीच एक बाप-बेटे से विपरीत दोस्त जैसा रिश्ता था। मुकेश अपनी जिम्मेदारीयो को बखूबी जानता था,  वह अपनी जिम्मेदारियों से न घबराने वाला था और न ही मुँह मोड़ने वाला था,रंजीत को अपनी इकलौती संतान से उम्मीदें बहुत थी ।मुकेश की जो प्राब्लम थी, वो ये कि पिता की देखभाल के साथ अपनी बोर्ड की परीक्षा जिससे अब ज्यादा दिन नही बचे थे, घर की आर्थिक हालत रंजीत की स्वास्थ्य के साथ ही बिगड़ते जा रहे थे। कोचिंग,  स्कूल, और फिर पिता की देखभाल सच मे मुकेश से वक्त  बहुत बड़ा इम्तिहान ले रहा था ।

  एक दिन रंजीत  को एक फोन आया, वो फोन किसी और का नही बल्कि उनके साथ काम करने वाले उनके दोस्त विनित का था।उसने रंजीत से जो कहा उसने तो रंजीत की जमीन ही हिला के रख दी । शाम को जब मुकेश घर लौटा तो रंजीत कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे थे। रंजीत जो कठिन से कठिन दिनो मे  मुस्कराना नही भूलते थे, आज ऐसा क्या हो गया था जो मुकेश के घर लौटने पर मुकेश को देखा तक नही उलटे मुकेश ने जब उनसे इस बदले हुए व्यवहार का कारण जानना चाहा तो रंजीत मुकेश पर ऐसे भड़क उठे, मानो मुकेश ने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो । मुकेश पिता के इस व्यवहार से आश्चर्य मे पड़ गया उसने जानने की कोशिश तो बहुत की पर हर बार पिता के बढ़ते क्रोध के कारण वो चुप हो गया ।

  रात को मुकेश और उसके पिता अपने-अपने बिस्तर पर सोने चले गए । अंधेरे कमरे मे दोनो करवटे बदलते रहे नींद दोनो की गायब थी । रंजीत का तो पता नही पर मुकेश अपने पिता के बदले व्यवहार से काफी  दुखी था साथ ही कुछ घबराया हुआ था । आखिर मुकेश क्यू घबराया हुआ था और कुछ दिनो से वो शाम को छः बजे क्यों घर लौटता था,  जबकि स्कूल की तो शाम चार बजे ही छुट्टी हो जाती थी….

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  अगली सुबह मुकेश थोड़ा देर से उठा,  रात को काफी देर तक वो जगा रहा था, शायद इसलिए, पर आज की सुबह कुछ अलग थी। उठकर जैसे ही पिता के बिस्तर की तरफ देखा। रंजीत बिस्तर से नदारद थे । इतनी सुबह वो कहाँ जा सकते है, शायद अपने किसी दोस्त के घर। यही सोचकर मुकेश पिता को ढूँढने की बजाय,  घर के काम मे लग गया ।

  सुबह के दस बज गए, मुकेश के स्कूल का समय हो गया। पर रंजित घर नहीं लौटे, उन्होंने सुबह की दवा भी नही ली । मुकेश पिता को ढूँढने निकला पूरे मोहल्ले मे ढूंढ लिया, पर रंजित का कुछ पता नहीं चला। फिर घबराए मुकेश ने सारा शहर, वो सारी जगह छान मारा जहाँ रंजीत के होने की सम्भावना लगी। थक-हार के घर लौटा तो सामने  रंजीत तख्ते पर मायूस बैठे थे। उनके लगातार लम्बी छुट्टियो के कारण उन्हे, नौकरी से निकला जा चुका था, उनके दोस्त का फोन इसी सिलसिले मे आया था । “गरीबी मे आटा गिला” एक तो बीमारियों मे पैसे की जरूरत उपर से पगार भी खत्म। मुकेश को इस बात की आशंका पहले से ही थी, उसने इस चैलेंज को  स्वीकार कर लिया था,  उसने बताया कि आजकल वो स्कूल के बाद बच्चों को पढाता है।

समय के साथ हालात बदले, रंजीत को भोपाल की एक फैक्टरी मे नौकरी और आवास मिल गया। दोनों भोपाल के लिए रवाना हुए।

  भोपाल मे रंजीत का अपने आवास मे सामान शिफ्टिंग  के दौरान पड़ोसी फारुख भाई की रेलिंग पर रखा गमला टूट गया, तभी बत्तमीज की आवाज से माहोल गूँज उठा, तमतमाई हुई “हूर की परी” सामने खड़ी थी। बला की खूबसूरती रखने वाली निशा,  फारुख भाई की इकलौती दौलत, जिसके सामने अच्छे अच्छे डगमगा जाए । ऐसे कोहिनूर हीरा जैसा न कभी था, ना शायद होगा । जिसको देखकर हर कोई  शायद यही कहे…..
  निशा को पिंक गुलाब बहुत पसंद थे और यहाँ तो वही टूट गया था, सामने रंजीत को देख, निशा का सारा गुस्सा उन्हीं पर फूट पड़ा । मुकेश कमरे से भगे आया, पिता से बदसलूकी होता देख वो भी निशा से भीड़ गया । इधर रंजीत मुकेश को पीछे खींचते, उधर   निशा की अम्मी उसे, शाम को फारुख भाई को जब ये बात पता चली तो वो भी भड़क उठे । उनकी नाराजगी की असली वजह निशा-मुकेश का झगड़ा नही था, दरअसल हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बँटवारे मे लाहौर से हिन्दुस्तान आते वक्त फारूक मियां के वालिद दंगे की भेट चढ गए, जिसकी वजह वो हिन्दुओ को मानते हैं और उनसे बेइंतहा नफरत भी करते जिसके रंग मे उनका सारा परिवार भी रंगा हुआ है । तभी दरवाजे खटखटाने की  आवाज आती है, निशा दरवाजा खोलती है तो पिंक गुलाब के फूल को एक गमले मे लिए, सामने रंजीत खड़े हैं और उनके पिछे टेढ़े मन से मुकेश खड़ा है……
  उन्हें देखकर निशा का चेहरा लाल हो जाता है। वो उन्हें अंदर आने को भी नहीं कहती है। तभी पीछे से निशा की मां आसमा निशा से पूछती है। कौन आया है, निशा, पर निशा कुछ नहीं कहती बस उन्हें घूरे जाती है। तब तक आसमा वहां आ जाती है। उनको सलाम करती है, और बड़े प्रेम से उन्हें अंदर आने के लिए कहती है। पर रंजीत आसमां से कहते हैं, कि जब तक हमारी ये, बिटिया रानी हमारी गलती कि माफी नहीं देती तब तक हम यही दरवाजे पर खड़े रहेंगे। आसमा जोर से हंस देती है, वह निशा को घूरती है, और उनका गमला अपने हाथों में लेकर उन्हें अंदर बुला लेती है। रंजीत फारुख मियां को नमस्कार करते हैं। रंजीत की नजरिए से वाकिफ होने पर फारुख मियां का गुस्सा शांत हो जाता है। काफी देर तक बातें होने के बाद रंजीत और मुकेश अपने घर में चले जाते हैं।

    दूसरी दिन मुकेश फूलों में पानी दे रहा होता है। तब तक निशा अपनी लान में झाड़ू लगाने आती है। जैसे ही दोनों की निगाहें एक दूसरे से टकराती है, दोनों एक दूसरे को घुड़क के मुंह फेर अपने काम में वापस लग जाते हैं। कई दिन गुजर जाने के बाद भी दोनो का स्वभाव एक दूसरे के लिए ऐसा ही बना रहता है। पर रंजीत किसी न किसी बहाने फारुख भाई एवं उनके परिवार से बातचीत का सिलसिला जोड़े रखते हैं। निशा ने भी इंटरमीडिएट पास कर लिया था दोनों का दाखिला नेशनल PG कॉलेज भोपाल, में होता है।

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  कॉलेज का पहला दिन जैसे ही निशा अपनी स्कूटी से निकली उसके ठीक पीछे पीछे मुकेश भी निकला निशा आगे-आगे मुकेश पीछे-पीछे निशा ने मुकेश को घर से निकलते हुए तो देखा था पर मुकेश उसके पीछे पीछे चल रहा है। ये वो नहीं जानती थी, जैसे ही उसकी निगाह स्कूटी के साइड मिरर पर पड़ती है। वो मुकेश को देख लेती है, हालांकि मुकेश का उसके पीछे पीछे आना तो महज एक संजोग था। पर निशा उसे कुछ और ही समझ बैठी निशा कॉलेज पहुंचकर सीधे अपने क्लास में चली जाती है। और अपनी आदतों के अनुसार वो क्लास की सबसे पहली सीट पर बैठती है,मुकेश जैसे ही क्लास में घुसता है, उसे देख निशा तमतमा जाती है वह मन ही मन सोचती है। “इसके वालिद को मैंने दो बात क्या कह दी। यह तो मेरे पीछे ही पड़ गया। इसकी हिम्मत तो देखो घर तो घर मेरा पीछा करते करते यहां तक जा पहुंचा अभी इसकी शिकायत प्रिंसिपल सर से करती हूं”

   तभी क्लास में सर प्रवेश करते हैं मुकेश क्लास के दौरान देखता है तो बगल वाली सीट पर निशा को पाता है, दोनों की आंखें टकराती है, आंखों ही आंखों मैं कुछ बातें होती हैं, निशा न जाने किसे बत्तमीज बोलकर सामने रुख कर लेती है। कॉलेज खत्म हो जाता है दोनों घर चले आते हैं निशा मुकेश के पीछा करते करते कॉलेज चले आने की शिकायत आसमा से कहती है।

   दिन गुजरते हैं, कॉलेज लास्ट ईयर स्टूडेंट्स के लिए जूनियर्स ने फेरवल पार्टी रखी है। उसमें निशा और मुकेश एक ग्रुप डांस में पार्टिसिपेट कर रहे होते हैं। प्रेक्टिस के दौरान निशा का पैर फिसल जाता है, वह धड़ाम से नीचे गिरती है। उसे गिरते देख वहां मौजूद लोग उस पर जोर-जोर से हंसने लगते हैं, इस बात से निशा को बेइज्जती महसूस होती है। वो अपनी आंखो के आंसू छुपाने लगती है, तभी मुकेश ये सब देख सभी दोस्तों पर बरस पड़ता है। वह सहारे से निशा को उठाता है, उसके पैरों में थोड़ी चोट व मोच आई है, वो उसको वापस घर ले आता है। आज के इस वाक्य से मुकेश व निशा दोस्त बन जाते हैं। अब पीछे पीछे नहीं बल्कि मुकेश घर से तो पैदल निकलता है। पर आगे जाकर वो निशा की स्कूटी पर उसके साथ कॉलेज जाता है। निशा मुकेश से उसके बीते दिनों के बारे में पूछती है। अब वो कॉलेज में सारा दिन साथ बिताते हैं।

    हालांकि ये दोस्ती कालेज तक ही सीमित रहती है।
   मुकेश आज घर में अकेला है। सुबह उठते ही जैसे ही वह चाय बनाने की सोचता है। दूध का बर्तन हाथ से नीचे गिर जाता है, अब चाय कैसे बनेगी उसे अपनी पड़ोसन निशा की याद आती है। वो निशा के घर चुपके से जाता है। वो दरवाजे पर पहुंचता है, दरवाजे के उल्टी तरफ दीवार पर लगी टीवी मैं आसमां अपना फेवरेट सीरियल देख रही हैं। वो पैर दबा के चोरों की तरह चुपके से अंदर चला जाता है। निशा आंगन में अपने बाल धो रही होती है ।

  मुकेश निशा को एकटक देखता ही रहता है। मुकेश सोचता है, इससे कहूं या ना कहूं पर चाय की तलब ने मुकेश को बेचैन कर रखा था। वो धीरे से निशा के बगल में बैठता है। जैसे ही कुछ बोलने की सोचता है, बगल किसी की मौजूदगी भाप निशा चौक जाती है। उसके मुख से जोर की चीख निकल जाती है। मुकेश उसके लबो को दबा लेता है, दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले हैं,  निशा के मुख को मुकेश के हाथ कसकर दबा रखे हैं। काली घटावो की तरह निशा के केशुवो से टपकता उसके गालों पर पानी मोती की तरह उसके हुस्न में चार चांद लगा रहा है। चौकने से उसकी आंखें काफी बड़ी और नशीली हो गई हैं, उसके भौहें तन गई हैं, मुकेश उसके इस खूबसूरत रूप को देखकर मदहोश हो जाता है। और तभी क्या हुआ कहती हुई, वहां आसमां आ जाती है। मुकेश जल्दी से खंबे के पीछे छुप जाता है। निशा आसमां से कहती है कुछ नहीं हुआ मां बस मुझे लगा कोई बिल्ली बगल से गुजरी है।

   आसमां के जाते ही मुकेश निशा से कहता है “तो मैं बिल्ली हूँ हाँ”

 निशा “तुम बिल्ली नहीं बिल्ला हो, जंगली बिल्ला”
    “और तुम मेरे घर में यू चोरों की तरह क्या कर रहे हो??

    मुकेश “कुछ चुराने आया हूं”
   निशा “क्या”??
   मुकेश “तुम्हारा दिल”              
निशा “शक्ल कभी देखी है”??
  मुकेश “रोज देखता हूं तुम्हारी आंखों में”

   निशा उसके हाजिर जवाबी पर मुस्कुरा उठती है, फिर पलट कर वापस पूछती है, मगर तुम यहां क्यों आए हो, और तुम्हें शर्म नहीं आती एक नहाती हुई। लड़की को देखते हुए वह भी ना जाने कब से, मुकेश यार ऐसी बात नहीं है जैसे ही चाय बनाने के लिए किचन में गया दूध का भगोना हाथ से लगकर नीचे गिर गया। अब चाय कैसे बनाऊ सोचा तुम्हारे घर से चाय के लिए थोड़ा दूध ले लू। निशा अच्छा तो यह बात है तो पहले बोलते इतनी कहानी गढने  की क्या जरूरत थी रुको मैं दूध लाती हूँ।

   मुकेश दूध लेकर चुपके से घर चला जाता है। पर अब क्या हुआ अब तो हद ही हो गई चीनी के डिब्बे में चीनी भी खत्म हो गई है। बड़ी कोशिश करने पर चुटकी भर चीनी डिब्बे में से प्राप्त हुई, अब क्या करें, क्या चाय पीने की इच्छा पर पानी डाल दें। वैसे किराने की दुकान दूर है, निशा का घर दो कदम के फासले पर शर्म को मारकर मुकेश अपनी दोस्त निशा के घर फिर पहुंचता है। इस बार तो आसमां दीवार की तरफ ही मुख करके बैठी है। मुकेश निशा के पास कैसे जाएं वो कहीं दिख भी नहीं रही वैसे हमेशा दरवाजे पर ही धरना देती रहती है। मगर आज जाने कहां डेरा जमाए बैठी है।

   तब तक सामने से जाती गाय पर नजर पड़ती है। मुकेश निशा का दरवाजा खोल थोड़े ही प्रयासों से गाय को अंदर लाने में कामयाब हो जाता है। और दरवाजे के बगल में छुप जाता है।

    लॉन में गाय को घूमता देखकर आसमा उसे लॉन से बाहर करने चली जाती है। मुकेश मौका पाकर घर में पुनः दाखिल हो जाता है। इस बार निशा नहाने के बाद पीछे के बरामदे में अपने बाल सुखा रही है। मुकेश को दूध और अब चीनी मांगते हुए बड़ी संकोच लगती है। वह बड़ी हिम्मत के साथ निशा की ओर बढ़ता है निशा अचानक पीछे घूम जाती है। सामने मुकेश है, चेहरे पर मासूमियत और हाथ में एक छोटी-सी कटोरी है।

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    निशा उसको देख कर अपने गाल पर हाथ रखते हुए बड़े ठहाके के साथ जोर-जोर से हंसने लगती है। उसकी हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। उसकी इस हंसी के आगे मुकेश भी खुद को रोक नहीं पा सका, वो भी हंसने लगता है,हंसते हंसते ही निशा इशारों-इशारों में मुकेश से पूछती है, “अब क्या फिर से दूध गिरा दिया या फिर कोई नई कहानी लेकर आए हो।”

   मुकेश  “चीनी खत्म हो गई है।”
   निशा और जोर जोर से हंसती है।

 ” अच्छा अब चीनी खत्म हो गई अभी मैं चीनी दूंगी फिर तुम आओगे और कहोगे निशा चायपत्ती भी खत्म हो गई है। जब चाय पीने का इतना ही मन है तो सीधे बोल देते इतना ड्रामा किसलिए मैं अम्मी से तुम्हारे लिए चाय बनवाती हूं, एकदम स्पेशल कड़क चाय तब तक तुम बाहर बैठकर टीवी देखो।”

   “मुकेश थोड़ा चीढ कर बोला, तुम्हें चीनी देना हो तो दो वरना मैं चलता हूं, मेरा मजाक उड़ाने की जरूरत नहीं जो बात थी। वो मैंने तुमको बता दी”

   निशा “अच्छा बाबा ठीक है, इतना नाराज क्यों होते हो”

  निशा मुकेश के हाथों से कटोरी खींच लेती है, और उसे चीनी ला कर देती है।

    उस दिन के बाद दोनों की दोस्ती और ज्यादा मजबूत हो जाती है।

     एकदिन आशमा के घर में निशा के चीखने की आवाज आती है। मुकेश दौड़ा निशा के घर में घुसता है, तभी निशा के बाथरुम से एक नन्हा सा कॉकरोच निकलता है। भीगी निशा पूरे कायनात को घायल करने के लिए काफी है, मुकेश खुद को रोक नहीं पाता है। धीरे धीरे मुकेश निशा के आंखों में समाता चला जाता है। आज निशा की खूबसूरती ने उसे दीवाना बना दिया था। आज दोनों एक हो जाते हैं।

   बाहर से “निशा निशा .. .” की आवाज आती है। हालांकि दोनों गहरी नींद थे परंतु आसमा की आवाज से दोनों के शरीर में बिजली दौड़ जाती है। अगली सुबह निशा स्कूटी से निकलती है, मुकेश कॉलेज जाने के लिए आगे चौराहे पर वे उसका वेट कर रहा होता है, मुकेश को आज इग्नोर कर निशा आगे बढ़ जाती है।

   कॉलेज में सारा दिन दोनों एक ही सीट पर हजारों मील की दूरी पर नजर आ रहे हैं, मुकेश से दूरी बनाने के लिए निशा कॉलेज जाना ही बंद कर देती है।

    कालेज में एग्जाम का दिन आ जाता है, दोनों कॉलेज पहुंचते हैं, कॉलेज में निशा स्टैंड में स्कूटी रखकर जैसे ही बाहर निकलती है। मुकेश उसका हाथ पकड़ लेता है और उसे खींच कर साइड में लाता है। मुकेश उससे अपना कसूर पूछता है, निशा मुकेश को बहुत बुरा-भला बनाती है, बार-बार निशा को जाने से रोकने पर निशा गुस्से में मुकेश को एक जोरदार तमाचा जड़ देती है। मुकेश के साथ साथ उन्हें देख रहे लोग अवाक रह जाते है, इस इंसल्ट को भी मुकेश इग्नोर कर देता है, वह निशा से कहता है।

  “आज मैं तुम्हारा यहां तब तक वेट करुंगा। जब तक तुम मुझे मेरी हर गलती के लिए माफ नहीं कर देती”, निशा उसे अनसुना कर के रोती हुई वहां से चली जाती है। परीक्षा शुरु हो जाती है निशा  सेकंड फ्लोर पर  अपने रूम में  पहुंचती है  और खिड़की के पास  लगी अपनी सीट पर बैठ जाती है ड्यूटी पर भटनागर मैडम है वह निशा को बहुत मानती हैं, निशा चुपचाप अपने सीट पर बैठी है, वह उसके पास आकर पूछती हैं

    “क्या हुआ निशा तुम बैठी क्यों हो तुम कुछ लिख क्यों नहीं रही हो कोई प्रॉब्लम है क्या”

 निशा “नो मैम” कहते हुए कुछ लिखने का दिखावा करने लगती हैं पर उसका मन तो मुकेश में ही रमा था आधे घंटे बीत चुके थे निशा का ध्यान अचानक कालेज के मेन गेट पर पड़ता है मुकेश अपने कहे के मुताबिक चिलचिलाती धूप में खड़ा एकटक निशा को देख रहा है ।
    पर दोस्तों फासला जितना ज्यादा हो, आंखों के तीर भी उतना ही सटीक निशाने पर लगते हैं । परीक्षा का एक घंटा बीत जाता हैं। अचानक निशा चेयर से उठ जाती है और तेजी से कमरे से बाहर निकल जाती है  ।मैडम भटनागर उससे कुछ पूछती हैं। पर जिन कदमों में प्रेम के पहिये लग जाएं भला उन्हें कौन रोक सकता है, निशा दौड़े-दौड़े मुकेश के पास पहुंचती है । वह उससे लिपट कर खूब रोती है। यह आशु  शायद मुकेश से इतने दिनों की जुदाई मैं मिली निशा के दर्द की कहानी कह रहे थे।

    उसका ये किस मुकेश से उसके प्यार के “इकरार” को बयां कर रहा था।
   सारा कॉलेज इस प्यार के “इकरार” का गवाह बना तालियां बजा रहा था।

       Writer
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    author

    Karan Mishra

    करन मिश्रा को प्रारंभ से ही गीत संगीत में काफी रुचि रही है । आपको शायरी एवं कविताएं कहने का भी बहुत शौक है । आपको, अपने निजी जीवन एवं कार्य क्षेत्र में मिले अनुभवों के आधार पर प्रेरणादायक विचार एवं कहानियां लिखना काफी पसंद है । करन अपनी कविताओं एवं विचारों के माध्यम से पाठको, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने की कोशिश करते रहे हैं ।

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