हरिहरपुर गांव अपने आप में काफी विशाल था । गांव के क्षेत्रफल की तरह ही गांव की आबादी भी काफी ज्यादा थी । परंतु इसी गांव मे झीनक की एक छोटी सी झोपड़ी थी । जिस पर पूरा गांव टिका था । गांव के सभी लोग के चाय-पानी के लिए झीनक ही एक मात्र सहारा था । सुबह होते होते ही गांव के सभी लोग झीनक के दरवाजे पहुंच जाते जबकि इतनी सुबह खुद झीनक अभी खटिया पर करवटें बदल रहा होता था । लोगों की आवाजाही से झीनक की नींद टूटती हालांकि वह काफी फुर्तीला था ।
ऐसे में वह दूसरे आइटम को बनाकर अपने सर का जंजाल क्यूं पाले क्योंकि एक तो चीजों को बनाना उसके बाद उसको खपाना अपने आप में एक बहुत बड़ा सर दर्द था । वह सोचता कि अगर नए सामान नहीं बिके तो ऐसे मे उसका बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा ।
वैसे भी वह जो कुछ भी बना कर रख देता है । गांव वाले उसे चट कर जाते हैं । ऐसी में उसे ज्यादा दौड़ भाग करने की, ज्यादा सर खुजलाने की जरूरत ही क्या है । धीरे धीरे काफी दिन गुजर गया झीनक की दुकान जैसे पहले थे वैसे ही आज भी है, न उसमें कोई परिवर्तन आया न उसकी दुकान में ।
ऐसे में वह तुरंत अगेठी में कोयला सुलगाना शुरू कर देता क्योंकि गांव की आबादी काफी थी और गांव में चाय की दुकान चलाने वाला मात्र एक झीनक ही था ।
ऐसे में लोगों की आशाए और उम्मीदें झीनक पर टिकी रहती परंतु सबकी आशा और उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत झीनक सुबह नाश्ते में चने की घुघरी, बहुत ही खराब क्वालिटी की चाय उन्हे वह उपलब्ध कराता ।11:00 बजे के बाद उसका समोसा तैयार होता और दोपहर होते-होते वह प्याज की पकौड़ियां तलता । इतने में ही उसका पूरा दिन बीत जाता ।
ऐसे में लोगों की आशाए और उम्मीदें झीनक पर टिकी रहती परंतु सबकी आशा और उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत झीनक सुबह नाश्ते में चने की घुघरी, बहुत ही खराब क्वालिटी की चाय उन्हे वह उपलब्ध कराता ।11:00 बजे के बाद उसका समोसा तैयार होता और दोपहर होते-होते वह प्याज की पकौड़ियां तलता । इतने में ही उसका पूरा दिन बीत जाता ।
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अगर कोई गांव का व्यक्ति उसकी दुकान पर पानी पीने के लिए मीठे की मांग करता तो उसके पास इसके लिए भी कोई ज्यादा वेरिएशन नहीं थी । उसके पास सिर्फ दो ही मिठाईयां थी एक बर्फी जो सुख कर सफेद हो चुकी थी और दूसरा सर फोड़ने वाला बूंदी का लड्डू जो शायद गांव के बुजुर्गों को उनके दांतो की जवानी याद दिला देने के लिए काफी थे हलाकि गांव के कुछ बुद्धिजीवी लोग झीनक से कुछ अच्छा बनाने को कहते तब झीनक उनसे से कहता है कि
"अरे मालिक यहाँ कौन है जो सामान के अच्छे पैसे मुझे देगा । अभी तो जो मैं बनाता हूं उसी का पैसा लोग मुझे नहीं दे पाते । कईयों के तो उधार सालों से चल रहे हैं । ऐसे में अगर मैं कुछ और बनाऊंगा तो उसे खाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे । मगर उसके पैसे कोई नहीं देगा"
तब गांव वाले उसे समझाते कि
"ऐसा नहीं है तुम बनाओ तो सही लोग तुमसे सामान भी खरीदेंगे और तुम्हें उसके पैसे भी देंगे"
मगर झीनक घूम फिर कर अपनी वही बात दोहराया करता था । असल में बात कुछ और ही थी झीनक जानता था कि उस पूरे गांव में दूर-दूर तक दूसरा कोई हलवाई नहीं है ऐसे में भला वह जो कुछ भी बनाकर गांव वालों को खिलाएगा वे उसे खाने के लिए लेना मजबूरी है क्योंकि उनके पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है ।
ऐसे में वह दूसरे आइटम को बनाकर अपने सर का जंजाल क्यूं पाले क्योंकि एक तो चीजों को बनाना उसके बाद उसको खपाना अपने आप में एक बहुत बड़ा सर दर्द था । वह सोचता कि अगर नए सामान नहीं बिके तो ऐसे मे उसका बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा ।
वैसे भी वह जो कुछ भी बना कर रख देता है । गांव वाले उसे चट कर जाते हैं । ऐसी में उसे ज्यादा दौड़ भाग करने की, ज्यादा सर खुजलाने की जरूरत ही क्या है । धीरे धीरे काफी दिन गुजर गया झीनक की दुकान जैसे पहले थे वैसे ही आज भी है, न उसमें कोई परिवर्तन आया न उसकी दुकान में ।
एक दिन उसकी दुकान के सामने कोई छप्पर छा रहा था । उसने जानने की कोशिश की तो पता चला कोई वहां चाय की दुकान खोलने वाला है । वहां बैठे गांव वालों ने झीनक की चुटकी लेनी शुरू कर दी । कुछ लोगों ने कहा
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"देखो झीनक तुमने आज तक बड़े मजे लूटे है हमें जला-भुना, सड़ा-पका सब खिलाया और हम खाने को भी मजबूर थे । मगर अब तुम्हारी यह सब नहीं चलेगी गांव बदल रहा है यहां अब एक से दो दुकानें हो रही हैं । कल दो से चार हो जायेंगे ऐसे में तुम्हें अपने अंदर सुधार लाना ही होगा"
तब झीनक ने कहा
"देखते जाइए साहब दुकान खुल तो रही है मगर चलती कितने दिन हैं मैं यहां वर्षों से रह रहा हूं और मैं यहां के लोगों के रग-रग से वाकिफ हूं मैं जानता हूं कि मेरे सिवा यहां कोई नहीं टिक सकता । कितना नुकसान सहके भी मै यहां चुपचाप पड़ा रहता हूं ये तो मै ही जानता हूं लोग मुझे जो दे देते हैं मैं वह खुशी-खुशी रख लेता हूं । अभी दुकान खुल जाने दो फिर आप भी देखना दो-चार दिन वह दुकान चाहे चला ले उसके बाद तो उसे यहां से जाना ही होगा । यहां रहकर जो त्याग और तपस्या मैने किया है वह कोई नहीं कह कर सकता"
ऐसा कह कर झीनक फिर से अपने काम धाम में लग गया कुछ ही दिनों में सामने वाली नई दुकान भी चालू हो गई । सुबह सवेरे हमेशा की तरह गांव वाले धीरे-धीरे झीनक की दुकान पर आना शुरु हुए । झीनक का क्या उसने फिर से वही अंगीठी सुलगाई और पतीले में चाय रख दी । चाय हो ही रही थी कि तभी गांव वालों ने सामने वाली दुकान के बारे में भी आपस में चर्चा शुरू कर दी । गांव वाले सामने खुली दुकान के बारे में आपस में अभी चर्चा कर ही रहे थे तभी लोगों ने देखा कि सामने दुकान पर चाय के साथ साथ कचौड़ियां और जलेबियां भी तली जा रहे हैं ।
यह देखते ही गांव के कई नौजवान एवं बुजुर्ग झीनक की दुकान से उठ सामने वाली दुकान पर चल दिए । देखते ही देखते सामने वाले की दुकान पर लोगों का तांता लग गया । काफी दिनों बाद उन्होंने गांव मे रहकर जलेबी कचोरी का स्वाद चखा था हालांकि फिर भी झीनक की दुकान पर लोग मौजूद थे । सामने वाली दुकान में कचौरी और जलेबी खत्म होते होते समोसे भी आ गए और दोपहर होते-होते कई तरह की पकौड़ियां भी छनकर कर आने लगी ।
ऐसे में जो उस दुकान की तरफ मुड़ा वह दोबारा झीनक की दुकान पर नहीं लौटा सामने की दुकान में चाय भी बहुत ही अच्छी क्वालिटी की थी । कुछ ही दिनों में सामने की दुकान में कई तरह की मिठाइयां भी बनकर सजने लगी जो दांत वालो को छोड़िए बिना दांत वालों के मुख से भी टूट सकती थी । ऐसे में नौजवान नहीं बुजुर्गों को भी उस दुकान ने अपनी और खींचना शुरु कर दिया हालांकि झीनक को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि वह खूब जानता था कि उधारी खाने वाले यह गांव वाले नगद पैसा दो-चार दिन तो दे देंगे मगर जैसे ही जीभ की प्यास मिटेगी वापस भाग कर उसी की दुकान पर आएंगे ।
मगर सामने वाली दुकान पर जो हो रहा था वह झीनक की सोच से बहुत विपरीत हो रहा था । कुछ ही दिनों में उसकी दुकान पर छोले भटूरे, पावभाजी और तमाम तरह के पकवान भी सारा-सारा दिन बनने लगे । ऐसे में ग्राहकों तो जैसे झीनक की दुकान को भूल ही बैठे ।
अब तो झीनक की दुकान पर वही आता जिसको ₹3 की चाय पीनी होती । जिसकी जेब में भी ₹5 या उससे ज्यादा होते वह सामने वाली दुकान पर ही जाता । ऐसे में उधारी देने वालों को छोड़कर लगभग सभी लोग झीनक की दुकान से नदारद हो गए झीनक की दुकान पर ग्राहकों की संख्या अचानक जमीन पर आ जाने से झीनक घबरा गया । मगर फिर भी उसमें उम्मीद बाकी थी । उसको लग रहा था कि महीना बीतते बीतते स्थिति फिर से सामान्य हो जाएगी और लोग महंगी दुकान को छोड़ कर उसकी दुकान पर वापस लौट आएंगे ।
अब तो झीनक की दुकान पर वही आता जिसको ₹3 की चाय पीनी होती । जिसकी जेब में भी ₹5 या उससे ज्यादा होते वह सामने वाली दुकान पर ही जाता । ऐसे में उधारी देने वालों को छोड़कर लगभग सभी लोग झीनक की दुकान से नदारद हो गए झीनक की दुकान पर ग्राहकों की संख्या अचानक जमीन पर आ जाने से झीनक घबरा गया । मगर फिर भी उसमें उम्मीद बाकी थी । उसको लग रहा था कि महीना बीतते बीतते स्थिति फिर से सामान्य हो जाएगी और लोग महंगी दुकान को छोड़ कर उसकी दुकान पर वापस लौट आएंगे ।
इसी भरोसे के साथ झीनक अपनी दुकान पर टिका रहा । मगर एक महीना तो क्या कई महीने गुजर गए मगर न ही सामने वाली दुकान पर पकवान फिके हुए और न ही ग्राहकों की संख्या फीकी पड़ी इतने लंबे समय में ग्राहकों की संख्या लगभग शून्य पाकर झीनक अब घबरा गया क्योंकि उसने जैसा सोचा था वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ ।
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झीनक की दुकान पर बुजुर्ग बुद्धिजीवी लोग आज भी आते और उससे सामने वाली दुकान के बारे में चुटकियां लेते हैं । पहले तो वह चुटकियां झीनक को भी अच्छी लगती । लोग कढ़ाते हैं और झीनक उसको पूरा करता है परंतु आज उसे उनकी बातें मानो जहर के जैसी लग रही थी ।
वह उन्हें सुनना भी नहीं चाहता था । कई बार तो वह गांव के उन लोगों से झगड़ बैठा । धीरे धीरे अब तो झीनक समझ चुका था कि उसने बहुत भारी गलती कर दी । उसकी सोच गलत थी ।
उसे अपने पकवानों में बदलाव लाने की बहुत जरूरत है अन्यथा उसकी दुकान के बंद होने की नौबत आ जाएगी । परंतु ग्राहकों की कमी से जूझ रहे झीनक को घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा था । उसने कई बार गांव वालों से कर्ज लेकर घर का खर्च चलाने की कोशिश की थी ।
खराब स्वास्थ्य की वजह से वह काफी कमजोर भी हो चुका था । ऐसे में सामने वाले की दुकान की बराबरी करने के लिए उसे कुछ भर्ती की आवश्यकता थी । जिसके लिए उसके पास पैसे बिल्कुल भी नहीं थे ।
चूंकि झीनक अपने पूरे जीवन में सिर्फ चाय, बर्फी, बूंदी के लड्डू, चने की घुघरी, समोसे और प्याज की पकौड़ी के सिवा और कुछ भी बनाना नहीं सीखा था, ऐसे में अचानक जब जेब में फूटी कौड़ी न होन ऐसी स्थिति में इस चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना उसके लिए असम्भव सा हो रहा था ।
देखते ही देखते काफी समय गुजर गया । इस दौरान झीनक ने थोड़ी बहुत कोशिश जरूर की परंतु सामने वाली दुकान के सामने उसकी कोशिशे बिल्कुल विफल रहा । जिसके कारण उसके ऊपर कर्ज का बोझ इतना हो गया कि जिसे चुकाना उसके लिए अब संभव नहीं था ।
उसे अपने पकवानों में बदलाव लाने की बहुत जरूरत है अन्यथा उसकी दुकान के बंद होने की नौबत आ जाएगी । परंतु ग्राहकों की कमी से जूझ रहे झीनक को घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा था । उसने कई बार गांव वालों से कर्ज लेकर घर का खर्च चलाने की कोशिश की थी ।
खराब स्वास्थ्य की वजह से वह काफी कमजोर भी हो चुका था । ऐसे में सामने वाले की दुकान की बराबरी करने के लिए उसे कुछ भर्ती की आवश्यकता थी । जिसके लिए उसके पास पैसे बिल्कुल भी नहीं थे ।
चूंकि झीनक अपने पूरे जीवन में सिर्फ चाय, बर्फी, बूंदी के लड्डू, चने की घुघरी, समोसे और प्याज की पकौड़ी के सिवा और कुछ भी बनाना नहीं सीखा था, ऐसे में अचानक जब जेब में फूटी कौड़ी न होन ऐसी स्थिति में इस चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना उसके लिए असम्भव सा हो रहा था ।
देखते ही देखते काफी समय गुजर गया । इस दौरान झीनक ने थोड़ी बहुत कोशिश जरूर की परंतु सामने वाली दुकान के सामने उसकी कोशिशे बिल्कुल विफल रहा । जिसके कारण उसके ऊपर कर्ज का बोझ इतना हो गया कि जिसे चुकाना उसके लिए अब संभव नहीं था ।
अचानक एक दिन जब गांव वाले सामने वाली दुकान पर बैठ कचौरी जलेबी का मजा ले रहे थे । तभी किसी ने झीनक की दुकान की तरफ इशारा करते हुए कहा
"अरे भाई.. क्या बात है ? कई दिनों से झीनक की दुकान यूं ही बंद पड़ी है"
और धीरे-धीरे काफी वक्त गुजर गया मगर झीनक की दुकान दोबारा नहीं खुली और न ही गांव में झीनक फिर कभी दिखाई दिया ।
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है | Moral Of This Inspirational Hindi Story
कभी ऑडियो कैसेट को सीडी ने और सीडी को फिर डीवीडी ने चेंज कर दिया । आज जमाना पेन ड्राइव का है कल जमाना कोई और होगा अगर हम खुद को अपडेट नहीं कर सके , नई-नई चीजों को नहीं सीख सके तो हो सकता है कि कल की चुनौतीपूर्ण परिवेश में हम न टिक सके और रिटायर होने से पहले ही वक्त हमे रिटायर कर दे । आज से ये प्रण करें कि महीने में कम मे कम एक बार ही सही अपने करियर अपने बिजनेस मे कुछ नया करने की पूरी कोशिश करेंगे और कोशिश ही नहीं कुछ नया जरूर करेंगे और जो कर रहे हैं उसे और ज्यादा बेहतर करेंगे ।
दोस्तों हम लाइफ में जो कुछ भी कर रहे हैं । यदि हम उससे संतुष्ट हैं । तो ऐसे मे हम जो कर रहे हैं और जितना कर रहे हैं बस उसी को रेगुलर मेंटेन करने में लगे रहते हैं । उससे कुछ ज्यादा या उससे कुछ बेहतर करने कि हम कभी कोशिश ही नहीं करते हमें लगता है कि जब हमारा काम बस इतने से ही चल जा रहा है तो फिर इससे ज्यादा करने की हमें जरूरत ही क्या है । बेवजह ज्यादा रिस्क उठाने की या ज्यादा माथापच्ची करने से क्या फायदा कभी-कभी कुछ लोग कुछ और करने की कोशिश भी करते हैं तो उनके साथ वाले उन्हें हतोत्साहित, यह कहकर कर देते हैं कि इन सब चीजों से कोई फायदा नहीं है । जो चल रहा है उसे चलने दो ।
दोस्तों जो चल रहा है उसे चलने दो तो जो चल रहा है वह हमेशा ऐसे ही चलेगा ये कोई जरूरी नहीं वक्त तेजी से बदल रहा है चीजें तेजी से बदल रहीं हैं कंम्पटीशन पहले से काफी तेज हो चुका है । बदलते जमाने में हमें खुद को बदलना होगा हमें यह समझना होगा कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता । हमें समझना होगा कि जो परिस्थितियां हमें आज आसान लग रही हैं वही कल कठिन हो सकती हैं । कंपटीशन बढ़ सकता है इसलिए बेहतर होगा कल को बेहतर बनाने के लिए आज से हम स्वयं खुद अपने लिए चुनौतियां निर्धारित करें और उन्हें पूरा करने की कोशिश करें । अपने जॉब में अपने बिजनेस में अपने करियर में हम जो कर रहे हैं उससे अलग और उससे भी अच्छा सोचने और करने की कोशिश करें ।
क्या करें ? कैसे करें ? और कहां करें ?
ये तीन सवाल मन में हमेशा जिंदा रखें इन तीन सवालों का जवाब हर पल ढूंढते रहे और जब आपको इनका जवाब मिल जाए तो उसे लागू करने में देर न करें खुद को हमेशा क्रिएटिव बनाएं रखे । आसान समय आसान ही बना रहेगा अगर आप कठिनाइयों का निरंतर सामना करते रहेंगे । अगर आप इसे आसान मानकर और यह आसान ही रहेगा ऐसा समझ कर आप कुछ भी नया नहीं करेंगे तो यकीनन बदलते परिवेश में आपके साथ भी परेशानियां जरूर आएंगे । ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपने नियमित कार्य को ही इतिश्री करके खुद को बहुत महान समझ लेते हैं । उनको लगता है कि
"दूसरे तो इतना भी नहीं कर पाते । मैने तो फिर भी बहुत कर लिया"
मैं उनसे कहना चाहता हूं कि ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है क्योंकि कंपटीशन के दौर में कब चीजें बदल जाएंगी यह बता पाना मुश्किल है ।
"दूसरे तो इतना भी नहीं कर पाते । मैने तो फिर भी बहुत कर लिया"
मैं उनसे कहना चाहता हूं कि ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है क्योंकि कंपटीशन के दौर में कब चीजें बदल जाएंगी यह बता पाना मुश्किल है ।
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Team MyNiceLine.com
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