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What Is More Important - Successful Life Or Happy Life, Story In Hindi
अपने पूर्वजो के रास्ते पर चलकर गामा एक दिन काफी मशहूर पहलवान बना । गांव के खेतों में छोटी-छोटी कुश्ती लड़ने वाला गामा एक दिन राज्य सरकार खिलाड़ी बना ।
उसके नाम पर ही गांव का नाम रखा गया क्योंकि आज तक गांव में पहलवान तो बहुत हुए थे । मगर उसके जैसा पहलवान गांव में आज तक कभी नहीं हुआ जिसने गांव के नाम को इस तरह से चमकाया था ।
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इसलिए गांव वालों ने गांव का नाम बदलकर गामा रख दिया । गामा गांव में ही अन्य बच्चों को कुश्ती सिखाया करता ।
उसका एक लड़का था जिसका नाम था वीर । वीर अभी बहुत छोटा था । मगर अपने पिता को कुश्तिया लड़ते वह हमेशा देखता और उनकी तरह ही बनना चाहता था ।
छोटी सी उम्र में पिता के अखाड़े में पहुंच जाता और अन्य पहलवानों से दो-दो हाथ करता । अन्य पहलवान भी वीर का खूब मजा लेते उससे दो-दो हाथ करते । उस छोटे से बच्चे से कई बार वह खुद पटकाने का नाटक करते ।
वीर उसे अपनी जीत समझ कर बहुत खुश होता । गामा को अपने बेटे की कुश्ती में दिलचस्पी को देख कर बहुत खुशी होती और क्यों न हो गामा भी शायद अपने बेटे को अपने जैसा ही पहलवान बनते देखना चाहता था ।
धीरे-धीरे वीर बड़ा हुआ । वीर का मन सिर्फ कुश्ती में था । वह रोज सवेरे उठ कर कुश्ती के अखाड़े में पहुंच जाता और जी तोड़ मेहनत करता । उसकी मेहनत को देखकर सभी बहुत प्रसन्नता गांव वालों को लगने लगा कि एक नया गामा अब तैयार होने जा रहा है ।
दुर्भाग्यवश अपने अथक परिश्रम के बावजूद कुश्ती में वह कुछ खास नहीं कर पा रहा था मगर फिर भी बार बार हारने के बाद भी जीतने का हौसला वह नहीं छोड़ता । वह और दुगने आत्मविश्वास के साथ कुश्तिया लड़ता ।
उसके स्कूल के साथी दूसरे खेल भी खेला करते पर वह केवल कुश्ती में ही मन रमाता । कुश्ती, वीर के लिए ही बनी थी या यूं कहें कि वीर कुश्ती के लिए ही बना था । स्कूल का काम निपटाने के बाद वह सीधे अखाड़े की तरफ ही भागता ।
धीरे-धीरे वीर बड़ा हो गया और अब उसके बारहवीं का रिजल्ट आने का समय था । गामा को अपने पुत्र की प्रतिभा पर पूरा विश्वास था और उनका विश्वास खरा उतरा । वीर, जिला टॉप किया साथ ही प्रदेश में भी उसका 100 बच्चों में स्थान आया ।
यह देख के गामा बहुत खुश हुए उन्होंने वीर को बुलाया और उससे कहा
"देखो वीर यह सच है कि हम आज तक कुश्तियां ही लड़ते आए हैं और यही हमारे खानदान की विशेषता है । इस कुश्ती ने हमें बहुत कुछ दिया है । सिर्फ धन ही नहीं मान सम्मान सब कुछ दिया है । मुझे पता है कि तुम्हें कुश्ती खेलना बहुत अच्छा लगता है परंतु यह जिंदगी महज एक खेल नहीं है । जीवन चलाने के लिए कुछ करना भी पड़ता है कुछ कमाना भी पड़ता है । आज तक तुम कुश्ती में कुछ खास नहीं कर सके हो मुझे लगता है कि तुम राज्यस्तर तो छोड़ो जिला स्तर की कुश्ती में भी कभी कोई स्थान प्राप्त नहीं कर सकोगे । मेरे इतने दिनों का अनुभव बताता है कि तुम्हें कुश्ती को भूल जाना ही बेहतर होगा"
पिता की ऐसी बातों को सुन के वीर को जबरदस्त झटका लगा क्योंकि आज तक जो पिता उसे कुश्ती में आगे बढ़ाने के लिए स्वयं, जी तोड़ मेहनत कर रहे थे ।
अचानक आज ऐसा क्या हो गया था कि पिता उसे उसकी जिंदगी, यानी कुश्ती छोड़ देने को कह रहे है । पिता की बातों को सुनकर वीर की आंखें भर आई ।
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अपने पिता से पूछा पिताजी आप यह क्या कह रहे हैं गामा ने कहा
"देखो वीर मेरी ये बात तुम्हे थोड़ी अजीब और शायद बुरी भी लग रही हो मगर ये यथार्थ है । तुम अपनी प्रतिभा को पहचानो बेवजह अपना समय नष्ट न करो तुम देखो कि तुम किस में सफल हो सकते हो । तुम वह करो जिसमें तुम सफल हो सकते हो । मैंने देखा है कि तुमने सबसे ज्यादा वक्त कुश्ती को दिया मगर उसमें तुम ज्यादा कुछ नहीं कर सके । कुश्ती के बाद जो समय बचता है वह समय तुम अपनी पढ़ाई लिखाई को देते हो । इसके बावजूद तुमने पढ़ाई में वह कर दिखाया है जो रात-दिन किताबों में डूबे रहने वाले भी नहीं कर सकते हैं । मुझे लगता है कि तुममें पढ़ाई-लिखाई की जबरदस्त प्रतिभा है । तुम अगर पूरे मन से पढ़ाई करो तो तुम एक दिन काफी बड़ी सफलता अर्जित कर सकते हो परंतु अगर तुम यूं ही कुश्ती में अपना समय नष्ट करते रहे तो एक दिन सिवाय निराशा के तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगेगा"
पिता की इन बातों को सुनकर वीर के पैरों से जैसे जमीन ही खिसक गई । उसे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहें वह एकदम खामोश खड़ा था क्योंकि आज बहुत कुछ अजीब हो रहा था उसके साथ पिता ने उसे फिर कहा
"देखो बेटा मैंने सोचा है कि तुम्हें मैं बड़े शहर में ऊंची शिक्षा के लिए भेजूं । तुम अगर चाहो तो जा सकते हो और वहां ऊंची शिक्षा हासिल करके एक बड़ी सफलता अर्जित कर सकते हो । मेरा अनुभव तुम से कहीं ज्यादा है और मैं हमेशा तुम्हारे भले की ही सोचूगा"
पिता ने फिर कहा
"तुम ज्यादा कुछ मत सोचो तुम्हारे अंदर जो प्रतिभा है उसे मैंने पहचान लिया है तुम मेरा कहा मानो और शहर चले जाओ इस कुश्ती को छोड़ दो और अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाओ"
यह कह कर गामा वहां से चला गया । मगर वीर चुपचाप खड़ा रहा वह गांव के अंतिम छोर पर स्थित एक पोखरे के पास खामोश बैठा रहा उसे कुश्ती से इतना प्यार था कि उसे आज पढ़ाई में इतनी बड़ी सफलता की खुशी मनाने से ज्यादा अखाड़े में जाने की जल्दी थी ।
परंतु आज उसके सामने बिल्कुल विचित्र स्थिति पैदा हो गई थी । जिसके बारे में कुछ भी फैसला लेना उसके लिए आसान नहीं था । ऐसे में वह गुमसुम चुपचाप पोखरे के किनारे आधी रात तक बैठा रहा । मगर फिर भी वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका । क्योंकि एक तरफ उसे कुश्ती से बेइंतहा लगाव था वही दूसरी ओर पिता की कही बातें भी उसे कुछ हद तक सही लग रही थी । वह कई दिनों तक इस विषय पर मंथन करता रहा । पर फिर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा सका ।
मानसिक उलझन में वह अखाड़े में भी कई दिनों तक नहीं गया । कई दिनों तक बेटे को अखाड़े मे न देखकर पिता उसके पास आए और बोले
"क्या हुआ तुम अखाड़े मे क्यों नहीं आ रहे हो और घर पर भी नहीं रहते । आखिर तुम कहां रहते हो क्या करते हो कुछ बताओगे"
वीर बोला
"पिता जी आपने जो मुझसे कहा है मैं उसी पर विचार कर रहा हूं पर यह समझ नहीं पा रहा हूं कि मुझे क्या निर्णय लूँ"
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गामा ने कहा
"देखो बेटा मुझे जो समझाना था समझा दिया अब आगे जो करना है उसका निर्णय तुम्हें ही लेना पड़ेगा । वक्त रहते अगर तुमने एक सही निर्णय लिया तो उस निर्णय का कुछ महत्व होगा । वक्त के बाद लिया गया निर्णय किसी काम का नहीं"
वीर को पिता की बातें एक बार फिर से परेशान कर गई परंतु कुछ दिनों बाद वीर को पिता की कही बातें समझ आने लगी । उसने शहर जाके पूरे मन से पढ़ाई करने का निश्चय किया ।
शहर जाने के बाद वह लगातार पढ़ाई में जमा रहा और उसने दूसरा कोई काम नहीं किया । कुछ दिनों बाद वीर ने आईटी इंजीनियरिंग कम्प्लीट की उसे एक बहुत बड़ी आईटी कंपनी में ऊचे ओहदे पर जॉब मिली । कंपनी की तरफ से उसे एक आलीशान बंगला भी मिला ।
एक दिन जब वीर अपने बंगले के पीछे वाली बालकनी मे चाय पी रहा था । तभी उसकी नजर सामने थोड़ी दूर पर स्थित अखाड़े पर पड़ी जहां कई पहलवान कुश्तियां लड़ रहे थे । उसे देखकर वीर का चेहरा मानो काला पड़ गया । उसने हाथ में लिया का प्याला अचानक मेज पर रख दिया ।
वह खड़ा होकर बालकनी से अखाड़े में लड़ते पहलवानों को देखता रहा उसके ऑफिस जाने का समय हो गया । मोबाइल पर घंटियां बज रही थी । मगर वीर को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था । वह खामोश था ।
ये खामोशी क्या कह रही थी यह समझना मुश्किल था । वीर पूरे दिन उस अखाड़े मे पहलवानो को देखता रहा और उन पहलवानों में शायद वह खुद को ढूंढता रहा । वीर ने कुश्ती को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि उससे कहीं ज्यादा सफलता की संभावना उसे पढ़ाई में दिखी ।
मगर कुश्ती में असफल होकर के भी उसे जो खुशी मिलती थी । वह इतनी बड़ी कामयाबी में भी शायद कहीं नहीं थी । वह खुश नहीं था क्योंकि उसे जिस काम को करने से खुशी मिलती थी उसे उसने जाने कब का पीछे छोड़ दिया था ।
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Moral Of The Story
Writer
Karan "GirijaNandan"
With
Team MyNiceLine.com
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