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समझदारी से होती है हर मुश्किल आसान - प्रेरणादायक हिन्दी स्टोरी | Difficulties Solve By Intelligently Story In Hindi
एक ब्राह्मण परिवार में समृद्धि और सुलेखा ने जन्म लिया । उनकी शिक्षा दीक्षा पूरी होने के बाद पिता ने उनके विवाह की सोची । दोनों के लिए अच्छे से अच्छे रिश्ते की तलाश पिता ने शुरू कर दी । काफी तलाशने के बाद एक ही परिवार के दो भाइयों को उन्होंने सुलेखा और समृद्धि के लिए पसंद किया ।
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इस प्रकार दोनों का विवाह एक ही परिवार के दो सगे भाइयों के साथ एक ही दिन संपन्न हो गया । दोनों एक ही साथ एक ही गाड़ी में बैठकर अपने नए जीवन का शुभारंभ करने अपने ससुराल की ओर चल पड़ी ।
वैसे तो ससुराल में जब लड़की जाती है तो उसके लिए वहां पर सभी अंजान होते हैं । उसके लिए ये दुनिया बिल्कुल नई होती है मगर इन दो बहनों के लिए उनका ससुराल और ससुरालो से थोड़ा भिन्न था ।
दोनों बहनों के लिए यद्यपि ससुराल के सभी लोग अजनबी थे परंतु उन दोनों बहनों को इस ससुराल में एक ऐसे व्यक्ति का साथ मिला था जो उनके साथ बचपन से था और वह साथ था स्वयं उन दोनों बहनों का, एक ही घर में विवाह होने का सबसे बड़ा लाभ उन्हें यही था ।
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दोनों बहनों के लिए यद्यपि ससुराल के सभी लोग अजनबी थे परंतु उन दोनों बहनों को इस ससुराल में एक ऐसे व्यक्ति का साथ मिला था जो उनके साथ बचपन से था और वह साथ था स्वयं उन दोनों बहनों का, एक ही घर में विवाह होने का सबसे बड़ा लाभ उन्हें यही था ।
जिसके कारण वे एक दूसरे के से अपनी बातें बेझिझक शेयर कर सकती थी और किसी भी मुश्किल का हल भी एक दूसरे के साथ बातचीत करके निकाल सकती थी । ऐसे में अंजानी जगह भी उन्हें जानी पहचानी लगने लगी ।
कुछ ही दिनों में उन्होंने ससुराल में एडजस्ट कर लिया । उनके पतियों को भी उनकी यह समझ काफी पसंद आई । ससुराल में सब कुछ ठीक चलने लगा । दोनों बहने वहां बहुत खुश थी परंतु उनके सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी ।
वे दोनों भाई अर्थात उन दोनों के पति बिल्कुल निठल्ले थे । वह कोई काम नहीं करते । सारा दिन बस इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर काटते रहते थे और उनका समय इसी तरह बीत जाता । जिसके कारण वह पैसे पैसे के मोहताज हो गए ।
उनके पास न जेब खर्च के लिए पैसे थे न घर खर्च के लिए पैसो की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही थी । घर में अनाज का एक दाना भी अब नही रहा । इन सब बातों से दोनों बहने काफी परेशान थीं । तभी उन्हें पता चला की मायके में उनके पिता काफी दिनो से बीमार चल रहे हैं ।
दोनों ने पिता से मिलने की इच्छा अपने-अपने पतियों से जतायी । दोनों औरतों का एक ही साथ मायके भेज देना उनके लिए संभव तो नहीं था परंतु ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता था ।
दोनों पिता के घर पहुंचकर पिता की सेवा में लग गई । उनकी सेवा से पिता की हालत थोड़ी सुधर तो अवश्य गई परंतु फिर भी उनकी स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे दोनों बहने उन्हें वहां अकेला छोड़ कर ससुराल वापस लौट सके ।
ऐसे में उन्होंने पिता की हालत संभलने तक वहीं कुछ दिन रुकने का निश्चय किया । कुछ दिनों बाद पिता जब उनसे बातचीत करने की स्थिति में हुए तो उन्होंने उनसे उनका हालचाल जानना चाहा ।
पहले तो दोनों बहनों ने पिता से झूठ बताया और कहा कि वे ससुराल में बहुत सुख से हैं परंतु उनका यह झूठ उनके अनुभवी पिता पलभर में ही भाप गए । उन्होंने दोनों बेटियों पर सच बोलने का दबाव डाला ।
वे बीमार पिता को और चिंता में नहीं डालना चाहती थी परंतु पिता के बार बार दबाव डालने पर उन्हे सच बताने को मजबूर हो गई और उन्होंने पिता से सारा सच बता दिया ।
वे बीमार पिता को और चिंता में नहीं डालना चाहती थी परंतु पिता के बार बार दबाव डालने पर उन्हे सच बताने को मजबूर हो गई और उन्होंने पिता से सारा सच बता दिया ।
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अपनी बेटियों की ऐसी दुर्दशा सुनकर पिता का गला भर आया और इतने दिनों तक उनसे ये बात छुपाने के लिए पिता ने उन्हें बहुत फटकार लगाई हालांकि पिता के पास कोई विशेष धन तो नहीं था जिससे वे उनकी मदद कर सकें । उनके पास सिर्फ वही एक छोटी सी एक कुटिया थी जिसका कोई मोल नहीं था ।
अगले दिन पिता ने उनके सामने दो पौधे रखे और उन्हें उनमे से एक-एक पौधा उठाने को और अपने साथ ले जाने को कहा ।
अगले दिन पिता ने उनके सामने दो पौधे रखे और उन्हें उनमे से एक-एक पौधा उठाने को और अपने साथ ले जाने को कहा ।
तब बेटियों ने पूछा
"पिताजी इस पौधे का हम क्या करेंगे"
पिता ने उनसे ऐसा कहा
पिता की बातों पर दोनों को पूर्ण भरोसा था । कुछ ही दिनों बाद पिता की बीमारी से मृत्यु हो गई । उनके अंतिम संस्कार के पश्चात दोनों बहने पिता के दिए हुए पौधे को लेकर ससुराल वापस चली आयीं बहनों ने अपने अपने कमरे के ठीक सामने अपने साथ लाये पौधे को लगा दिया और उसकी दिन रात बड़े ही आस्था और विश्वास के साथ उसकी सेवा करने लगी ।
"पिताजी इस पौधे का हम क्या करेंगे"
"तुम इन्हे कोई सामान्य पौधा मत समझो इसे ले जाकर तुम अपने घरों में लगाओ और इसकी खूब सेवा करना फिर देखना कैसे तुम्हारी दरिद्रता दूर हो जाती है और कैसे तुम सुख और आनंद से घिर जाते हो"
पिता ने उनसे ऐसा कहा
पिता की बातों पर दोनों को पूर्ण भरोसा था । कुछ ही दिनों बाद पिता की बीमारी से मृत्यु हो गई । उनके अंतिम संस्कार के पश्चात दोनों बहने पिता के दिए हुए पौधे को लेकर ससुराल वापस चली आयीं बहनों ने अपने अपने कमरे के ठीक सामने अपने साथ लाये पौधे को लगा दिया और उसकी दिन रात बड़े ही आस्था और विश्वास के साथ उसकी सेवा करने लगी ।
जब दोनों भाइयों ने उस पौधे के बारे में उनसे पूछा तो उन्होंने पिता की कही हुई सारी बाते उन्हें बताई । जिसे सुनकर दोनों ठहाके मारकर हंसने लगे ।
उन्होंने ऐसे चमत्कारिक बातें आज तक सिर्फ आध्यात्मिक किताबों में ही पढ़ी थी या फिर दादा जी से कहानियों में सुन रखी थी ।
उन्हें हंसता हुआ देखकर दोनों बहनों को बहुत बुरा लगा । उन्होंने कहा
"आप लोगों को हमारे पिता जी की बातों पर विश्वास हो न हो परंतु हमें अपने पिता के ज्ञान उनकी बातों पर पूरा भरोसा है । देखना एक दिन यह पौधा हमारी जिंदगी में खुशियां जरूर लाएगा"
"आप लोगों को हमारे पिता जी की बातों पर विश्वास हो न हो परंतु हमें अपने पिता के ज्ञान उनकी बातों पर पूरा भरोसा है । देखना एक दिन यह पौधा हमारी जिंदगी में खुशियां जरूर लाएगा"
उनकी ऐसी विश्वास भरी बातों को सुनकर भी उन दोनों भाइयों को कोई फर्क नहीं पड़ा । वे दोनों बस उनपर हंसते रहे कुछ ही दिनों बाद सुलेखा की कही बातें सच साबित हुई और घर में धन का अभाव खत्म हो गया परंतु धन के आने से अहंकार का वास होने लगा और देखते ही देखते दोनों बहने अलग हो गई ।
घरों के बीच में एक लंबी दीवार खिंच गई समृद्धि और सुलेखा दोनों के रास्ते अलग हो गए । बचपन की आदतों के अनुरूप सुलेखा अपने जीवन को आनंद से बिताने में लगी रही जबकि समृद्धि जीवन का आनंद लेने के साथ-साथ बचत पर भी विशेष ध्यान दिया करती ।
यद्यपि दोनों पर पौधे की कृपा सामान थी परंतु बचत के कारण समृद्धि के पास ज्यादा धन इकट्ठा होने लगा । जिसकी मदद से उसने दो गाय और थोड़ी कृषि योग्य भूमि भी खरीदा ली ।
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अपनी बहन को इस प्रकार बढ़ता देख सुलेखा को थोड़ी शंका हुई क्योंकि समृद्धि के पास भी उतना ही जमा धन था सुलेखा के पास था । ऐसे में उसने थोड़े ही दिनों में इतना सब कुछ कैसे कर लिया ?
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सुलेखा को लगने लगा कि जो पौधे पिता ने उन दोनों को दिया था उसमें समृद्धि का पौधा उसे ज्यादा लाभ पहुंचा रहा है । धीरे धीरे सुलेखा के मन में एकतरफ समृद्धि और उसके पौधे को लेकर जलन और दूसरी तरफ अपने पौधे से उसे घृणा की भावना उत्पन्न होने लगी ।
उसको लगने लगा दोनों पोधों में से अपने लिए इस पौधे को चुनकर उसने बहुत भारी गलती की, एक ही जैसे दिखने वाले दोनों पौधों में उसका पौधा निठल्ला है । सही पौधे का चुनाव तो समृद्धि ने किया मैं मुर्ख थी और वह समझदार इसलिए उसने सही पौधे का चुना । सुलेखा को समझ आ गा कि समृद्धि ने उसे मूर्ख बनाया है
उसका अपने पौधे के प्रति लगाव बिल्कुल खत्म हो गया । वह उसकी आंखों में गड़ने लगा । समृद्धि के इस विश्वासघात के लिए सुलेखा ने उसे सबक सिखाने की सोची ।
एक दिन समृद्धि की गैरमौजूदगी में सुलेखा उसके पौधे के पास गई और पौधे पर टाड़ा गिरा गयी । देखते ही देखते समृद्धि का पौधा, टाड़ो से ढक गया ।
समृद्धि जब लौट कर आई तो उसने अपने पौधे का ऐसा हाल देखकर जमीन पकड़ ली । उसने पौधे को बचाने में जी जान लगा दी, जिसने जो कुछ सुझाया उसने वो सारे उपाय आजमा ढाले परंतु कोई फायदा नही हुआ । पौधा पूरी तरह से टाड़ो के गिरफ्त में आने लगा अब वह करे तो क्या ?
समृद्धि समझ गई कि उसके अच्छे दिन अब खत्म हुए । वह बहुत डर गई । उसे इस परेशानी से निकलने का कोई रास्ता नजर ही नहीं आ रहा था । वह बहुत गुम-सुम सी रहने लगी ।
हालाँकि इस पौधे की बदौलत इतने दिनों में उसने कुछ पैसे जरूर इकट्ठा कर लिए थे परंतु वो इतनी बड़ी जिंदगी को चलाने के लिए काफी नहीं थे ।
एक दिन जब मायूस समृद्धि बड़े ही उदास मन से हमेशा की भांति, उस पेड़ की पूजा कर रही थी । उसी समय पूजा में प्रयोग किया गया थोड़ा सा गुड़ पौधे के पास ही गिर गया, शाम को जब वह घर की चौखट पर बैठी उस पौधे को देखकर अपने पिता को याद कर रही थी तभी उसने देखा कि
इन सब को देखकर समृद्धि के दिमाग में एक विचार सूझा ।
पौधे के पास गिरे गुड़ के कारण वहां ढेर सारी चींटियां जाने कहां से आ गई हैं और वह उस गुड़ के साथ उन किड़ो को भी खत्म कर रही हैं
इन सब को देखकर समृद्धि के दिमाग में एक विचार सूझा ।
उसने फौरन बाजार से ढेर सारे गुड़ मगाएं और पूरे पौधे पर उस गुड़ को लगा ढाला । उसकी ये तरकीब बहुत काम आई, कुछ ही दिनों में देखते ही देखते चीटियों ने उन किड़ो का काम तमाम कर दिया ।
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इस प्रकार समृद्धि ने अपने सूझबुझ और समझदारी से अपने भाग्य स्वरूपी पौधे को पुनर्जीवित कर दिखाया ।
Moral of the story 
Writer
Karan "GirijaNandan"
With
Team MyNiceLine.com
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